न्यायपालिका

भारत का उच्चतम न्यायालय(Supreme Court of India)

भारत का उच्चतम न्यायालय या भारत का सर्वोच्च न्यायालय या भारत का सुप्रीम कोर्ट भारत का शीर्ष न्यायिक प्राधिकरण है जिसे भारत का संविधान/भारतीय संविधान के भाग 5 अध्याय 4 के तहत स्थापित किया गया है। भारतीय संघ की अधिकतम और व्यापक न्यायिक अधिकारिता उच्चतम न्यायालय को प्राप्त हैं। भारत का संविधान/भारतीय संविधान के अनुसार उच्चतम न्यायालय की भूमिका संघीय न्यायालय और भारत का संविधान/भारतीय संविधान के संरक्षक की है। भारत का संविधान/भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 से 147 तक में वर्णित नियम उच्चतम न्यायालय की संरचना और अधिकार क्षेत्रों की नींव हैं। उच्चतम न्यायालय सबसे उच्च अपीलीय अदालत है जो राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के उच्च न्यायालय/उच्च न्यायालयों के फैसलों के खिलाफ अपील सुनता है। इसके अलावा, राज्यों के बीच के विवादों या मौलिक अधिकारों और मानव अधिकारों के गंभीर उल्लंघन से सम्बन्धित याचिकाओं को आमतौर पर उच्च्तम न्यायालय के समक्ष सीधे रखा जाता है। भारत के उच्चतम न्यायालय का उद्घाटन 28 जनवरी 1950 को हुआ और उसके बाद से इसके द्वारा 24,000 से अधिक निर्णय दिए जा चुके हैं।

न्यान्यायाधीशों के वेतन और भत्ते- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 125 मे कहा गया कि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के वेतन व भत्ते दिये जाए जो संसद (भारत की संचित) निधि निर्मित करे। न्यायाधीश के लिए वेतन भत्ते अधिनियम 1जनवरी 2009 के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को 2,80,000 मासिक आय और न्यायाधीश को 2,50,000 मासिक आय प्राप्त हुए है। निःशुल्क आवास, मनोरंजन स्टाफ, कार और यातायात भत्ता मिलता है। इनके लिए वेतन संसद तय करती है जो कि संचित निधि से पारित होती है। कार्यकाल के दौरान वेतन मे कोई कटौती नही होती है। न्यायाधीश के कार्यकाल- 65 वर्ष की आयु। वर्तमान में सर्वोच्च न्यायलाय के मुख्य न्यायधीश शरद अरविंद बोबडे है।

न्यायालय का गठन

28 जनवरी 1950, भारत के एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य बनने के दो दिन बाद, भारत का उच्चतम न्यायालय अस्तित्व में आया। उद्घाटन समारोह का आयोजन संसद भवन के नरेंद्रमण्डल(चेंबर ऑफ़ प्रिंसेज़) भवन में किया गया था। इससे पहले सन् 1937 से 1950 तक चैंबर ऑफ़ प्रिंसेस ही भारत की संघीय अदालत का भवन था। आज़ादी के बाद भी सन् 1958 तक चैंबर ऑफ़ प्रिंसेस ही भारत के उच्चतम न्यायालय का भवन था, जब तक कि 1958 में उच्चतम न्यायालय ने अपने वर्तमान तिलक मार्ग, नई दिल्ली स्थित परिसर का अधिग्रहण किया।

भारत के उच्चतम न्यायालय ने भारतीय अदालत प्रणाली के शीर्ष पर पहुँचते हुए भारत की संघीय अदालत और प्रिवी काउंसिल की न्यायिक समिति को प्रतिस्थापित किया था।

28 जनवरी 1950 को इसके उद्घाटन के बाद, उच्चतम न्यायालय ने संसद भवन के चैंबर ऑफ़ प्रिंसेस में अपनी बैठकों की शुरुआत की। उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन (एस. सी. बी. ए.) सर्वोच्च न्यायालय की बार है। एस. सी . बी. ए. के वर्तमान अध्यक्ष प्रवीण पारेख हैं, जबकि के. सी. कौशिक मौजूदा मानद सचिव हैं।

उच्चतम न्यायालय परिसर

उच्चतम न्यायालय भवन के मुख्य ब्लॉक को भारत की राजधानी नई दिल्ली में तिलक रोड स्थित 22 एकड़ जमीन के एक वर्गाकार भूखंड पर बनाया गया है। निर्माण का डिजाइन केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग के प्रथम भारतीय अध्यक्ष मुख्य वास्तुकार गणेश भीकाजी देवलालीकर द्वारा इंडो-ब्रिटिश स्थापत्य शैली में बनाया गया था। न्यायालय 1958 में वर्तमान इमारत में स्थानान्तरित किया गया। भवन को न्याय के तराजू की छवि देने की वास्तुकारों की कोशिश के अंतर्गत भवन के केन्द्रीय ब्लाक को इस तरह बनाया गया है की वह तराजू के केन्द्रीय बीम की तरह लगे। 1979 में दो नए हिस्से पूर्व विंग और पश्चिम विंग को 1958 में बने परिसर में जोड़ा गया। कुल मिलकर इस परिसर में 15 अदालती कमरे हैं। मुख्य न्यायाधीश की अदालत, जो कि ने केन्द्रीय विंग के केंद्र में स्थित है सबसे बड़ा अदालती कार्यवाही का कमरा है। इसमें एक ऊंची छत के साथ एक बड़ा गुंबद भी है।

उच्चतम न्यायालय की संरचना

न्यायालय का आकार

भारत के संविधान द्वारा उच्चतम न्यायालय के लिए मूल रूप से दी गयी व्यवस्था में एक मुख्य न्यायाधीश तथा सात अन्य न्यायाधीशों को अधिनियमित किया गया था और इस संख्या को बढ़ाने का जिम्मा संसद पर छोड़ा गया था। प्रारंभिक वर्षों में, न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत मामलों को सुनने के लिए उच्चतम न्यायालय की पूरी पीठ एक साथ बैठा करती थी। जैसे जैसे न्यायालय के कार्य में वृद्धि हुई और लंबित मामले बढ़ने लगे, भारतीय संसद द्वारा न्यायाधीशों की मूल संख्या को आठ से बढ़ाकर 1956 में ग्यारह, 1960 में चौदह, 1978 में अठारह, 1986 में छब्बीस 2008 में इकत्तीस और 2019 में चौंतीस तक कर दिया गया। न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि हुई है, वर्तमान में वे दो या तीन की छोटी न्यायपीठों (जिन्हें ‘खंडपीठ’ कहा जाता है) के रूप में सुनवाई करते हैं। संवैधानिक मामले और ऐसे मामले जिनमें विधि के मौलिक प्रश्नों की व्याख्या देनी हो, की सुनवाई पांच या इससे अधिक न्यायाधीशों की पीठ (जिसे ‘संवैधानिक पीठ’ कहा जाता है) द्वारा की जाती है। कोई भी पीठ किसी भी विचाराधीन मामले को आवश्यकता पड़ने पर संख्या में बड़ी पीठ के पास सुनवाई के लिए भेज सकती है।

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति

संविधान में तैतीस (33) न्यायधीश तथा एक मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति का प्रावधान है। उच्चतम न्यायालय के सभी न्यायाधीशों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा उच्चतम न्यायालय के परामर्शानुसार की जाती है। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश इस प्रसंग में राष्ट्रपति को परामर्श देने से पूर्व अनिवार्य रूप से चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों के समूह से परामर्श प्राप्त करते हैं तथा इस समूह से प्राप्त परामर्श के आधार पर राष्ट्रपति को परामर्श देते हैं।

अनु 124 के अनुसार मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते समय राष्ट्रपति अपनी इच्छानुसार सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सलाह लेगा। वहीं अन्य जजों की नियुक्ति के समय उसे अनिवार्य रूप से मुख्य न्यायाधीश की सलाह माननी पडेगी
सर्वोच्च न्यायालय एडवोकेट्स आन रिकार्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ वाद 1993 मे दिये गये निर्णय के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय के जजों की नियुक्ति तथा उच्च न्यायालय के जजों के तबादले इस प्रकार की प्रक्रिया है जो सर्वाधिक योग्य उपलब्ध व्यक्तियों की नियुक्ति की जा सके। भारत के मुख्य न्यायाधीश का मत प्राथमिकता पायेगा। उच्च न्यायपालिका मे कोई नियुक्ति बिना उस की सहमति के नहीं होती है। संवैधानिक सत्ताओं के संघर्ष के समय भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायपालिका का प्रतिनिधित्व करेगा। राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश को अपने मत पर फिर से विचार करने को तभी कहेगा जब इस हेतु कोई तार्किक कारण मौजूद होगा। पुनः विचार के बाद उसका मत राष्ट्रपति पर बाध्यकारी होगा यद्यपि अपना मत प्रकट करते समय वह सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठम न्यायधीशों का मत जरूर लेगा। पुनःविचार की दशा मे फिर से उसे दो वरिष्ठम न्यायधीशों की राय लेनी होगी वह चाहे तो उच्च न्यायालय/सर्वोच्च न्यायालय के अन्य जजों की राय भी ले सकता है लेकिन सभी राय सदैव लिखित में होगी
बाद में अपना मत बदलते हुए न्यायालय ने कम से कम 4 जजों के साथ सलाह करना अनिवार्य कर दिया था। वह कोई भी सलाह राष्ट्रपति को अग्रेषित नहीं करेगा यदि दो या ज्यादा जजों की सलाह इसके विरूद्ध हो किंतु 4 जजों की सलाह उसे अन्य जजों जिनसे वो चाहे, सलाह लेने से नहीं रोकेगी।

न्यायाधीशों की योग्यताएँ

  • व्यक्ति भारत का नागरिक हो।
  • कम से कम पांच साल के लिए उच्च न्यायालय का न्यायाधीश या दो या दो से अधिक न्यायालयों में लगातार कम से कम पांच वर्षों तक न्यायाधीश के रूप में कार्य कर चुका हो। अथवा
  • किसी उच्च न्यायालय या न्यायालयों में लगातार दस वर्ष तक अधिवक्ता रह चुका हो। अथवा
  • वह व्यक्ति राष्ट्रपति की राय में एक प्रतिष्ठित विधिवेत्ता होना चाहिए।
  • यहाँ पर ये जानना आवश्यक है की उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बनने हेतु किसी भी प्रदेश के उच्च न्यायालय में न्यायाधीश का पांच वर्ष का अनुभव होना अनिवार्य है ,

और वह 62 वर्ष की आयु पूरी न किया हो, वर्तमान समय में CJAC निर्णय लेगी। किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश या फिर उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के एक तदर्थ न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया जा सकता है।

कार्यकाल

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष होती है। न्यायाधीशों को केवल (महाभियोग) दुर्व्यवहार या असमर्थता के सिद्ध होने पर संसद के दोनों सदनों द्वारा दो-तिहाई बहुमत से पारित प्रस्ताव के आधार पर ही राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है।

पदच्युति

उच्चतम न्यायालय के न्यायधीशों की राष्ट्रपति तब पदच्युत करेगा जब संसद के दोनों सदनों के कम से कम 2/3 उपस्थित तथा मत देने वाले तथा सदन के कुल बहुमत द्वारा पारित प्रस्ताव जो कि सिद्ध कदाचार या अक्षमता के आधार पर लाया गया हो के द्वारा उसे अधिकार दिया गया हो। ये आदेश उसी संसद सत्र मे लाया जायेगा जिस सत्र मे ये प्रस्ताव संसद ने पारित किया हो। अनु 124 मे वह प्रक्रिया वर्णित है जिससे जज पदच्युत होते है। इस प्रक्रिया के आधार पर संसद ने न्यायधीश अक्षमता अधिनियम 1968 पारित किया था। इसके अन्तर्गत

  • (1) संसद के किसी भी सदन मे प्रस्ताव लाया जा सकता है। लोकस्भा मे 100 राज्यसभा मे 50 सदस्यों का समर्थन अनिवार्य है
  • (2) प्रस्ताव मिलने पर सदन का सभापति एक 3 सदस्य समिति बनायेगा जो आरोपों की जाँच करेगी। समिति का अध्यक्ष सप्रीम कोर्ट का कार्यकारी जज होगा दूसरा सदस्य किसी हाई कोर्ट का मुख्य कार्यकारी जज होगा। तीसरा सदस्य माना हुआ विधिवेत्ता होगा। इसकी जाँच-रिपोर्ट सदन के सामने आयेगी। यदि इस मे जज को दोषी बताया हो तब भी सदन प्रस्ताव पारित करने को बाध्य नहीं होता किंतु यदि समिति आरोपों को खारिज कर दे तो सदन प्रस्ताव पारित नही कर सकता है।

अभी तक सिर्फ एक बार किसी जज के विरूद्ध जांच की गयी है। जज रामास्वामी दोषी सिद्ध हो गये थे किंतु संसद मे आवश्यक बहुमत के अभाव के चलते प्रस्ताव पारित नहीं किया जा सका था।

न्यायालय की जनसांख्यिकी

उच्चतम न्यायालय ने हमेशा एक विस्तृत क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व को बनाए रखा है। इसमें धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यक वर्गों से संबंधित न्यायाधीशों का एक अच्छा हिस्सा है। उच्चतम न्यायालय में नियुक्त होने वाली प्रथम महिला न्यायाधीश 1987 में नियुक्त हुईं न्यायमूर्ति फातिमा बीवी थीं। उनके बाद इसी क्रम में न्यायमूर्ति सुजाता मनोहर, न्यायमूर्ति रूमा पाल और न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा का नाम आता है। न्यायमूर्ति रंजना देसाई, जो सबसे हाल ही में उच्चतम न्यायालय की महिला जज नियुक्त हुईं हैं, को मिलाकर वर्तमान में उच्चतम न्यायालय में दो महिला न्यायाधीश हैं, उच्चतम न्यायालय के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब दो महिलायें एक साथ न्यायाधीश हों।
2000 में न्यायमूर्ति के. जी. बालकृष्णन दलित समुदाय से पहले न्यायाधीश बने। बाद में, सन् 2007 में वे ही उच्चतम न्यायालय के पहले दलित मुख्य न्यायाधीश भी बने। 2010 में, भारत के मुख्य न्यायाधीश का पद सँभालने वाले न्यायमूर्ति एस. एच. कपाड़िया पारसी अल्पसंख्यक समुदाय से सम्बन्ध रखते हैं।

सर्वोच्च न्यायालय की खण्डपीठ

अनु 130 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय दिल्ली मे होगा परन्तु यह भारत मे और कही भी मुख्य न्यायाधीश के निर्णय के अनुसार राष्ट्रपति की स्वीकृति से सुनवाई कर सकेगा

क्षेत्रीय खंडपीठों का प्रश्न

विधि आयोग अपनी रिपोर्ट के माध्यम से क्षेत्रीय खंडपीठों के गठन की अनुसंशा कर चुका है न्यायालय के वकीलॉ ने भी प्राथर्ना की है कि वह अपनी क्षेत्रीय खंडपीठों का गठन करे ताकि देश के विभिन्न भागॉ मे निवास करने वाले वादियॉ के धन तथा समय दोनॉ की बचत हो सके, किंतु न्यायालय ने इस प्रश्न पे विचार करने के बाद निर्णय दिया है कि पीठॉ के गठन से
1. ये पीठे क्षेत्र के राज नैतिक दबाव मे आ जायेगी
2. इनके द्वारा सुप्रीम कोर्ट के एकात्मक चरित्र तथा संगठन को हानि पहुँच सकती है
किंतु इसके विरोध मे भी तर्क दिये गये है।

सर्वोच्च न्यायालय के महत्वपूर्ण निर्णय

क्र. सं. मामला उच्चतम न्यायालय का निर्णय
1. शंकरी प्रसाद बनाम भारत सरकार, 1951 संसद को अनुच्छेद 368 के तहत संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन करने की शक्ति है।
2. सज्जन सिंह बनाम राजस्थान सरकार, 1965 संसद को अनुच्छेद 368 के तहत संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन करने की शक्ति है।
3. गोलक नाथ बनाम पंजाब सरकार, 1967 संसद को संविधान के भाग III (मौलिक अधिकारों) में संशोधन करने का अधिकार नहीं है।
4. केशवानंद भारती बनाम केरल सरकार, 1971 संसद के किसी भी प्रावधान में संशोधन कर सकती है, लेकिन ‘बुनियादी संरचना’ को कमजोर नहीं कर सकती है।
5. इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण, 1975 सर्वोच्च न्यायालय ने बुनियादी संरचना की अपनी अवधारणा की भी पुष्टि की।
6. मिनर्वा मिल्स बनाम भारत सरकार, 1980 बुनियादी विशेषताओं में ‘न्यायिक समीक्षा’ और ‘मौलिक अधिकारों तथा निर्देशक सिद्धांतों के बीच संतुलन’ को जोड़कर बुनियादी ढांचे की अवधारणा को आगे विकसित किया गया।
7. मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम , 1985 भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अन्तर्गत स्त्री को भरण-पोषण पाने का अधिकार है क्योंकि यह एक अपराधिक मामला है न कि दीवानी (सिविल)।
8. कीहोतो होल्लोहन बनाम जाचील्लहु, 1992 ‘स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव’ को बुनियादी विशेषताओं में जोड़ा गया।
9. इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार, 1992 ‘कानून का शासन’, बुनियादी विशेषताओं में जोड़ा गया।
10. एस.आर बोम्मई बनाम भारत सरकार, 1994 संघीय ढांचे, भारत की एकता और अखंडता, धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद, सामाजिक न्याय और न्यायिक समीक्षा को बुनियादी विशेषताओं के रूप में दोहराया गया।

समालोचना

भ्रष्टाचार

वर्ष 2008 में सर्वोच्य न्यायालय विभिन्न विवादों में उलझा जिसमें न्यायप्रणाली के उच्चतम स्तर पर भ्रष्टाचार का मामला, करदाताओं के पैसे से महंगी निजी छुटियाँ, न्यायाधीशों की परिसम्पतियों को सार्वजनिक करने से मना करने का मामला, न्यायाधीशों की नियुक्ति में गोपनीयता, सूचना के अधिकार के तहत सूचना को सार्वजनिकर करने से मना करना जैसे सभी मामले शामिल रहे। मुख्य न्यायाधीश के॰ जी॰ बालकृष्णन ने अपने पद को जनसेवक का न होकर एक संवैधानिक प्राधिकारी का होने को लेकर काफी आलोचनाओं का सामना किया। बाद में उन्होंने अपना बयान वापस ले लिया। न्यायव्यवस्था को अपनी धीमी प्रक्रिया के लिए पूर्व राष्ट्रपतियों प्रतिभा पाटिल और ए॰पी॰जे॰ अब्दुल कलाम से भी कठिन आलोचना झेलनी पड़ी। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि न्यायव्यवस्था का भ्रष्टाचार के दौर से गुजरना बहुत बड़ी समस्या है और सुझाव दिया कि इसको बहुत शीघ्र इससे उबारने की आवश्यकता है।

भारत के कैबिनेट सचिव ने भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में राष्ट्रीय न्याय परिषद् का पैनल घटित करने के लिए संसद में न्यायाधीश जाँच (संशोधन) बिल 2008 प्रस्तुत किया। यह परिषद् उच्च न्यायालय और सर्वोच्य न्यायालय के न्यायाधीशों पर लगे भ्रष्टाचार और दुराचार के आरोपों की जाँच करेगी।

भारत के मुख्य न्यायाधीश(Chief Justice of India)

भारत गणराज्य में अब तक कुल 47 (वर्तमान मुख्य न्यायाधीश सहित) न्यायाधीशों ने मुख्य न्यायाधीश के रूप में सेवा की है। न्यायमूर्ति श्री एच जे कनिया भारत के पहले मुख्य न्यायाधीश थे तथा वर्तमान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री शरद अरविंद बोबडे हैं।

सूची

भारत के मुख्य न्यायाधीशों की सूची इस प्रकार है :-

 
क्रमांक नाम अवधि कुल अवधि (दिनों में) अदालत नियुक्ति
1 एच जे कनिया 26 जनवरी 1950 6 नवम्बर 1951 649 मुंबई उच्च न्यायालय राजेंद्र प्रसाद
2 एम पी शास्त्री 7 नवम्बर 1951 3 जनवरी 1954 788 मद्रास उच्च न्यायालय
3 मेहरचंद महाजन 4 जनवरी 1954 22 दिसम्बर 1954 352 पूर्वी पंजाब उच्च न्यायालय
4 बी के मुखरीजा 23 दिसम्बर 1954 31 जनवरी 1956 404 कोलकाता उच्च न्यायालय
5 एस आर दास 1 फ़रवरी 1956 30 सितम्बर 1959 1337 कोलकाता उच्च न्यायालय
6 बी पी सिन्हा 1 अक्टूबर 1959 31 जनवरी 1964 1583 पटना उच्च न्यायालय
7 पी बी गजेंद्रगडकर 1 फ़रवरी 1964 15 मार्च 1966 773 मुंबई उच्च न्यायालय एस राधाकृष्णन
8 ए के सरकार 16 मार्च 1966 29 जून 1966 105 कोलकाता उच्च न्यायालय
9 के एस राव 30 जून 1966 11 अप्रैल 1967 285 मद्रास उच्च न्यायालय
10 के एन वान्चू 12 अप्रैल 1967 24 फ़रवरी 1968 318 इलाहाबाद उच्च न्यायालय
11 एम हिदायतुल्ला[2] 25 फ़रवरी 1968 16 दिसम्बर 1970 1025 मुंबई उच्च न्यायालय ज़ाकिर हुसैन
12 जे सी शाह 17 दिसम्बर 1970 21 जनवरी 1971 35 मुंबई उच्च न्यायालय वी वी गिरी
13 एस एम सिकरी 22 जनवरी 1971 25 अप्रैल 1973 824 लाहौर उच्च न्यायालय
14 ए एन रे 26 अप्रैल 1973 27 जनवरी 1977 1372 कोलकाता उच्च न्यायालय
15 मिर्जा हमीदुल्ला बेग 28 जनवरी 1977 21 फ़रवरी 1978 389 इलाहाबाद उच्च न्यायालय फखरुद्दीन अली अहमद
16 वाई वी चंद्रचूड़ 22 फ़रवरी 1978 11 जुलाई 1985 2696 मुंबई उच्च न्यायालय नीलम संजीव रेड्डी
17 पी एन भगवती 12 जुलाई 1985 20 दिसम्बर 1986 526 गुजरात उच्च न्यायालय ज़ैल सिंह
18 आर एस पाठक 21 दिसम्बर 1986 18 जून 1989 940 इलाहाबाद उच्च न्यायालय
19 ई एस वेंकटरमैय्या 19 जून 1989 17 दिसम्बर 1989 181 कर्नाटक उच्च न्यायालय रामास्वामी वेंकटरमण
20 एस मुखर्जी 18 दिसम्बर 1989 25 सितम्बर 1990 281 कोलकाता उच्च न्यायालय
21 रंगनाथ मिश्र 26 सितम्बर 1990 24 नवम्बर 1991 424 उड़ीसा उच्च न्यायालय
22 के एन सिंह 25 नवम्बर 1991 12 दिसम्बर 1991 17 इलाहाबाद उच्च न्यायालय
23 एम एच कनिया 13 दिसम्बर 1991 17 नवम्बर 1992 340 मुंबई उच्च न्यायालय
24 एल एम शर्मा 18 नवम्बर 1992 11 फ़रवरी 1993 85 पटना उच्च न्यायालय शंकर दयाल शर्मा
25 एम एन वेंकटचेलैय्या 12 फ़रवरी 1993 24 अक्टूबर 1994 619 कर्नाटक उच्च न्यायालय
26 ए एम अहमदी 25 अक्टूबर 1994 24 मार्च 1997 881 गुजरात उच्च न्यायालय
27 जे एस वर्मा 25 मार्च 1997 17 जनवरी 1998 298 मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय
28 एम एम पुंछी 18 जनवरी 1998 9 अक्टूबर 1998 264 पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के आर नारायणन
29 ए एस आनंद 10 अक्टूबर 1998 11 जनवरी 2001 824 जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय
30 एस पी भरुचा 11 जनवरी 2001 6 मई 2002 480 मुंबई उच्च न्यायालय
31 बी एन कृपाल 6 मई 2002 8 नवम्बर 2002 186 दिल्ली उच्च न्यायालय
32 जी बी पटनायक 8 नवम्बर 2002 19 दिसम्बर 2002 41 उड़ीसा उच्च न्यायालय ऐ पी जे अब्दुल कलाम
33 वी एन खरे 19 दिसम्बर 2002 2 मई 2004 500 इलाहाबाद उच्च न्यायालय
34 राजेन्द्र बाबू 2 मई 2004 1 जून 2004 30 कर्नाटक उच्च न्यायालय
35 आर सी लहोटी 1 जून 2004 1 नवम्बर 2005 518 मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय
36 वाई के सभरवाल 1 नवम्बर 2005 13 जनवरी 2007 438 दिल्ली उच्च न्यायालय
37 के. जी. बालकृष्णन 13 जनवरी 2007 11 मई 2010 1214 केरल उच्च न्यायालय
38 एस एच कापड़िया 12 मई 2010 28 सितम्बर 2012 870 मुंबई उच्च न्यायालय प्रतिभा पाटिल
39 अल्तमास कबीर 29 सितम्बर 2012 18 जुलाई 2013 292 कोलकाता उच्च न्यायालय प्रणब मुखर्जी
40 पी सतशिवम 19 जुलाई 2013 26 अप्रैल 2014 281 मद्रास उच्च न्यायालय
41 राजेन्द्र मल लोढ़ा 26 अप्रैल 2014 27 सितम्बर 2014 154 राजस्थान उच्च न्यायालय
42 एच एल दत्तु 28 सितम्बर 2014 2 दिसम्बर 2015 430 केरल उच्च न्यायालय व छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय
43 टी एस ठाकुर 3 दिसम्बर 2015 3 जनवरी 2017 397 पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय और दिल्ली उच्च न्यायालय
44 जगदीश सिंह खेहर 4 जनवरी 2017 27 अगस्त 2017 235 पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, कर्नाटक एवं उच्च न्यायालय
45 दीपक मिश्रा 28 अगस्त 2017 2 अक्टूबर 2018 400 दिल्ली, पटना, उड़ीसा उच्च न्यायालय राम नाथ कोविन्द
46 रंजन गोगोई 3 अक्टूबर 2018 17 नवम्बर 2019 410 पंजाब, हरियाणा, गुवाहाटी उच्च न्यायालय
47 शरद अरविंद बोबडे 18 नवम्बर 2019 पदधारी मुंबई, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय

 

भारत के उच्च न्यायालयों की सूची(List of High Courts of India)

भारतीय संविधान के अनुच्छेद-214 में कहा गया है कि प्रत्येक राज्य का एक उच्च न्यायालय होगा, दो या दो से अधिक राज्यों के लिए एक ही न्यायालय हो सकता है। वर्तमान में भारत में कुल 25 उच्च न्यायालय है, आंध्र प्रदेश के अमरावती में देश का 25वां उच्च न्यायालय स्थापित किया गया है। 1 जनवरी 2019 को, इन उच्च न्यायालयों का अधिकार क्षेत्र कोई राज्य विशेष या राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के एक समूह होता हैं। उदाहरण के लिए, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय, पंजाब और हरियाणा राज्यों के साथ केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ को भी अपने अधिकार क्षेत्र में रखता हैं। उच्च न्यायालय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 214, अध्याय 5 भाग 6 के अंतर्गत स्थापित किए गए हैं।

न्यायिक प्रणाली के भाग के रूप में, उच्च न्यायालय राज्य विधायिकाओं और अधिकारी के संस्था से स्वतंत्र हैं।

भारतीय न्यायिक प्रणाली

उच्च न्यायालय, जिला न्यायालय के साथ, जो उनके अधीनस्थ होते है, राज्य के प्रमुख दीवानी न्यायालय होते हैं। हालांकि उच्च न्यायालय केवल उन्ही मामलो में दीवानी और फौजदारी अधिकारिता का प्रयोग करते है, जिन्मे उच्च न्यायालय के अधीनस्थ न्यायालय सक्षम (विधि द्वारा अधिकृत नहीं) न हो, आर्थिक आभाव या क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र कारणो से। उच्च न्यायालय कुछ मामलों में मूल अधिकार भी रखते है, जो राज्य या संघीय कानून में विशेष रूप से नामित होते है, जैसे – कंपनी कानून के मामलों को केवल एक उच्च अदालत में दाखिल किया जा सकता हैं। हालाँकि, मुख्य रूप से उच्च न्यायालयों के काम निचली अदालतों की अपील और रिट याचिका, भारत के संविधान के अनुच्छेद २२६ के तहत होता हैं। रिट याचिका उच्च न्यायालय का मूल विधिक्षेत्र भी हैं। प्रत्येक राज्य न्यायिक जिलों में विभाजित होता है, जहाँ एक ’जिला और सत्र न्यायाधीश’ होता हैं। उसे जिला न्यायाधीश माना जाता है जब वह नागरिक मामलो की सुनवाई करता है और सत्र न्यायाधीश माना जाता है जब वह आपराधिक मामलों कि सुनवाई करता हैं। उसे उच्च न्यायालय के न्यायाधिश के बाद सर्वोच्च न्यायिक अधिकार होते हैं। उसके नीचे नागरिक अधिकार के विभिन्न न्यायालय होते हैं, जिन्हे विभिन्न राज्यों में अलग अलग नामों से जाना जाता हैं।

न्यायाधीश की नियुक्ति

उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश और संबन्धित राज्य के राज्यपाल के साथ परामर्श के साथ होती हैं। इसके अलावा, राष्ट्रपति परामर्श के बिना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश हस्तांतरण के अधिकार का प्रयोग कर सकते हैं।

भारतीय उच्च न्यायालयों की सूची

न्यायालय स्थापित स्थापित अधिनियम न्यायक्षेत्र स्थान मंच न्यायाधीश
इलाहाबाद उच्च न्यायालय 11 जून 1866 उच्च न्यायालय अधिनियम, 1861 उत्तर प्रदेश इलाहाबाद लखनऊ 95
हैदराबाद उच्च न्यायालय 5 जुलाई 1954 उच्च न्यायालय अधिनियम, 1953 आंध्र प्रदेश
तेलंगाना
हैदराबाद 39
मुंबई उच्च न्यायालय 14 अगस्त 1862 उच्च न्यायालय अधिनियम, 1861 महाराष्ट्र, गोवा, दादरा आणि नगर-हवेली, दमण आणि दीव. मुंबई नागपूर, पणजी, औरंगाबाद 60
कलकत्ता उच्च न्यायालय 2 जुलाई 1862 उच्च न्यायालय अधिनियम, 1861 पश्चिम बंगाल, अंदमान आणि निकोबार कलकत्ता पोर्ट ब्लेयर (क्षेत्र मंच) 63
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय 11 जनवरी 2000 मध्यप्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2000 छत्तीसगढ बिलासपुर 08
दिल्ली उच्च न्यायालय 31 ऑक्टोबर 1966 दिल्ली उच्च न्यायालय अधिनियम, 1966 राष्ट्रीय राजधानी प्रदेश (दिल्ली) नवी दिल्ली 36
गुवाहाटी उच्च न्यायालय 1 मार्च 1948 भारत सरकार अधिनियम, 1935 अरुणाचल प्रदेश, आसाम, नागालँड, मिझोरम गुवाहाटी कोहिमा, ऐझॉल व इटानगर 27
गुजरात उच्च न्यायालय 1 मई 1960 बॉम्बे पुनर्गठन अधिनियम, 1960 गुजरात अहमदाबाद 42
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय 1971 हिमाचल प्रदेश अधिनियम, 1970 हिमाचल प्रदेश शिमला 9
जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय 28 अगस्त 1943 पत्र अधिकार-दान-पत्र काश्मीरचे महाराजा यांनी जारी. जम्मू और कश्मीर श्रीनगर & जम्मू[4] 14
झारखण्ड उच्च न्यायालय 2000 बिहार पुनर्गठन अधिनियम, 2000 झारखंड रांची 12
कर्नाटक उच्च न्यायालय 1884 मैसूर उच्च न्यायालय अधिनियम, 1884 कर्नाटक बंगलुरु क्षेत्र मंच: हुबळी-धारवाड व गुलबर्गा 40
केरल उच्च न्यायालय 1946 राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 केरल, लक्षद्वीप कोच्चि 40
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय 2 जनवरी 1936 भारत सरकार अधिनियम, 1935 मध्य प्रदेश जबलपुर ग्वालियर, इन्दौर 42
मद्रास उच्च न्यायालय 15 अगस्त 1862 उच्च न्यायालय अधिनियम, 1861 तमिलनाडु, पुडुचेरी चेन्नई मदुरै 47
उड़ीसा उच्च न्यायालय 3 एप्रिल 1948 ओडिसा उच्च न्यायालय आदेश, 1948 ओडिशा कटक 27
पटना उच्च न्यायालय 2 सितम्बर 1916 भारत सरकार अधिनियम, 1915 बिहार पटना 43
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय 8 नवम्बर 1947 उच्च न्यायालय (पंजाब) आदेश, 1947 पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ चंडीगढ़ 53
राजस्थान उच्च न्यायालय 21 जून 1949 राजस्थान उच्च न्यायालय अध्यादेश, 1949(By-BALU RAM YADAV) राजस्थान जोधपुर जयपुर 40
सिक्किम उच्च न्यायालय 1975 भारतीय संविधान का 38वाँ संशोधन( सिक्किम गंगटोक 03
उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय 2000 उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2000 उत्तराखण्ड नैनीताल 09
मणिपुर उच्च न्यायालय 25 मार्च 2013 पूर्वोत्तर क्षेत्र पुनर्गठन अधिनियम, 2012 मणिपुर इम्फाल 3
मेघालय उच्च न्यायालय 25 मार्च 2013 पूर्वोत्तर क्षेत्र पुनर्गठन अधिनियम, 2012 मेघालय शिलांग 3
त्रिपुरा उच्च न्यायालय 26 मार्च 2013 पूर्वोत्तर क्षेत्र पुनर्गठन अधिनियम, 2012 त्रिपुरा अगरतला 4
आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय 1 जनवरी 2019 आंध्रप्रदेश अमरावती

 

ज़िला न्यायालय(District Court)

भारत में जिला स्तर पर न्याय देने के लिए निर्मित न्यायालय जिला न्यायालय कहलाते हैं। ये न्यायालय एक जिला या कई जिलों के लोगों के लिए होते हैं जो जनसंख्या तथा मुकद्दमों की संख्या को देखते हुए तय की जाती है। ये न्यायालय उस प्रदेश के high court के प्रशासनिक नियंत्रण में काम करते हैं। जिला न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णयों को सम्बन्धित उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। अनुच्छेद 21 किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी बिना उसका कारण बताएं नहीं की जा सकती है। गिरफ्तार किए हुए व्यक्ति को विधिवेत्ता से परामर्श लेने की छूट होगी और उसे 24 घण्टे के अन्दर उसे निकटतम मजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत करना होगा।