बौद्धिक संपदा अधिकार (ट्रिप्स) विश्व व्यापार संगठन द्वारा संचालित अंतरराष्ट्रीय संधि है. इसमे बौद्धिक संपदा के अधिकारों के न्यूनतम मानकों को तय किया गया है.
भारत और दक्षिण अफ्रीका ने विकासशील देशों में कोविड-19 की दवाओं का उत्पादन आसान बनाने हेतु विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) से नियमों में राहत मांगी है. भारत और दक्षिण अफ्रीका ने इन दवाओं के मामले में बौद्धिक संपदा नियमों से छूट देने को कहा है.
भारत और दक्षिण अफ्रीका ने 02 अक्टूबर 2020 को डब्ल्यूटीओ को इस संबंध में पत्र लिखा. डब्ल्यूटीओ की वेबसाइट पर उपलब्ध इस पत्र में कहा गया है कि कोविड-19 से निपटने हेतु नई जांच, दवाएं और वैक्सीन बनाई जा रही हैं.
बता दें कि बौद्धिक संपदा अधिकार (ट्रिप्स) विश्व व्यापार संगठन द्वारा संचालित अंतरराष्ट्रीय संधि है. इसमे बौद्धिक संपदा के अधिकारों के न्यूनतम मानकों को तय किया गया है. दोनों देशों का कहना है कि विकासशील देश महामारी से बहुत प्रभावित हुए हैं और यहां किफायती दवाओं की उपलब्धता के रास्ते में पेटेंट समेत विभिन्न बौद्धिक संपदा अधिकारों से अड़चन आएगी.
कोरोना की दवा?
दुनिया में कोरोना की दवाइयों को लेकर तमाम प्रयोग चल रहे हैं, जो देश दवाई पहले बना लेगा जाहिर है डब्ल्यूटीओ में वही पहले पेटेंट करा लेगा. पेटेंट के नियम के अनुसार, पेटेंट कराने वाला देश ही उस दवा से जुड़े उत्पादन, इम्पोर्ट और एक्सपोर्ट का पूरा अधिकार रखेगा.
डब्ल्यूटीओ की लिखे गए पत्र में कहा गया है?
डब्ल्यूटीओ की वेबसाइट पर पोस्ट किए पत्र में कहा गया है कि कोरोना वायरस से बचाव के रूप में, COVID-19 के लिए चिकित्सीय और वैक्सीन विकसित किए गए हैं. अधिक चिंता इस बात की है कि इन्हें कैसे शीघ्र, पर्याप्त मात्रा में और वैश्विक मांग को पूरा करने के लिए सस्ती कीमत पर उपलब्ध कराया जाएगा. भारत और अफ्रिका ने कहा कि विकासशील राष्ट्र महामारी से प्रभावित हैं और पेटेंट सहित बौद्धिक संपदा अधिकार सस्ती चिकित्सा के प्रावधान में बाधा बन सकते हैं.
कोरोना का कहर जारी
दुनियाभर में कोरोना संक्रमितों की कुल संख्या तीन करोड़ 47 लाख से ज्यादा हो गई है जबकि मरने वालों का आंकड़ा 10 लाख 31 हजार से अधिक हो गया है. कोरोना वायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में शीर्ष पर मौजूद अमेरिका में संक्रमण के मामलों की संख्या 73 लाख से ज्यादा हो गई. वहीं मौतों की आंकड़ा दो लाख नौ हजार 355 हो गया है.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एंटी-एयर पॉल्यूशन कैंपेन का शुभारंभ किया
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ग्रीन दिल्ली मोबाइल ऐप के विकास और सभी प्रदूषण-विरोधी उपायों की निगरानी के लिए वॉर रूम स्थापित करने की घोषणा की है
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस 5 अक्टूबर 2020 को स्वच्छ राष्ट्रीय राजधानी के लिए “युध प्रदुषण के विरुदद्ध” नाम से एक वायु-प्रदूषण विरोधी अभियान शुरू किया है. मुख्यमंत्री ने कहा कि, इस कोविड -19 महामारी के दौरान यह वायु प्रदूषण जीवन के लिए खतरा हो सकता है क्योंकि ये दोनों ही हमारे फेफड़ों को प्रभावित करते हैं.
इस अभियान के तहत, राज्य ने दिल्ली शहर के सभी 13 प्रदूषण हॉटस्पॉट्स के लिए अलग-अलग योजनायें तैयार की हैं. इस अभियान के फोकस क्षेत्रों में पेड़ों का प्रत्यारोपण, इलेक्ट्रिक वाहन को अपनाना और धूल नियंत्रण जैसे विभिन्न उपाय शामिल हैं.
वार रूम और ग्रीन दिल्ली ऐप
इस अभियान की शुरुआत करते हुए, दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने यह घोषणा की है कि, वायु प्रदूषण से लड़ने के लिए उनकी सरकार द्वारा उठाए गए सभी प्रदूषण-विरोधी उपायों की निगरानी के लिए दिल्ली में एक “वॉर रूम” बनाया जा रहा है.
दिल्ली के मुख्यमंत्री ने यह भी घोषणा की है कि “ग्रीन दिल्ली” नामक एक मोबाइल ऐप का भी विकास किया जा रहा है, जो लोगों के द्वारा प्रदूषण पैदा करने वाली गतिविधियों को दिल्ली सरकार के ध्यान में लाने में मदद करेगा. ये गतिविधियां कचरा जलाने, औद्योगिक प्रदूषण आदि से संबंधित हो सकती हैं. इन शिकायतों को दी गई समय-सीमा में निपटाया जाएगा और मुख्यमंत्री को निपटाई गई और लंबित शिकायतों की एक दैनिक रिपोर्ट दी जायेगी.
वायु प्रदूषण से निपटने के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री ने जारी किए हैं अन्य निर्देश
संबंधित विभागों को धूल के उत्सर्जन को कम करने के लिए गड्ढों को भरने के लिए कहा गया है, जिसकी वजह से दिल्ली में काफी वायु प्रदूषण में होता है.
धूल प्रदूषण की जांच के लिए सरकार द्वारा गठित टीमें निर्माण स्थलों का लगातार निरीक्षण कर रही हैं.
दिल्ली के 300 किमी के दायरे में 11 थर्मल पावर प्लांट हैं; इन प्लांट्स को अपने उत्सर्जन को कम करना होगा.
केंद्र सरकार का बड़ा फैसला, ट्रैक्टरों के लिए नए प्रदूषण मानक की समय सीमा बढ़ाई
मंत्रालय को इस संबंध में कृषि मंत्रालय, ट्रैक्टर विनिर्माताओं और कृषि संघों से अनुरोध प्राप्त हुआ था. पहले ये मानदंड इसी अक्टूबर से लागू होने थे.
केंद्र सरकार ने हाल ही में निर्माण उपकरण वाहनों और ट्रैक्टरों के लिए नए उत्सर्जन मानदंडों को अमल में लाने की समय सीमा अगले साल तक बढ़ा दी है. मतलब ये कि नए मानक के ट्रैक्टर या अन्य निर्माण उपकरण वाहन पर अभी और मोहलत मिल गई है. यह क्रमशः अप्रैल 2021 और अक्टूबर 2021 कर दी गयी है.
पहले ये मानदंड इसी अक्टूबर से लागू होने थे. सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि मंत्रालय ने सीएमवीआर 1989 में संशोधन को अधिसूचित किया है जिसमें ट्रैक्टरों (टीआरईएम स्टेज- IV) के लिए उत्सर्जन मानदंडों के अगले चरण को लागू करने की तिथि को इस वर्ष अक्टूबर से हटा कर अगले वर्ष अक्टूबर कर दिया गया है.
ट्रैक्टर बनाने वाली कंपनियों को मिली छूट
मंत्रालय को इस संबंध में कृषि मंत्रालय, ट्रैक्टर विनिर्माताओं और कृषि संघों से अनुरोध प्राप्त हुआ था. बयान में कहा गया है कि निर्माण उपकरण वाहनों के लिए इन मानदंडों को लागू करने पर छह माह की छूट देते हुए इसे एक अप्रैल 2021 कर दिया गया है.
प्रदूषण मानकों से बचाने का प्रयास
उन्होंने कहा कि ये संशोधन, अन्य मोटर वाहनों के उत्सर्जन मानदंड (जो बीएस के मानदंड से परिचालित है) तथा कृषि मशीनरी, निर्माण उपकरण वाहनों और ऐसे अन्य उपकरणों के लिए प्रदूषण मानकों के बीच भ्रम से बचाने का भी प्रयास करता है.
अलग-अलग उत्सर्जन मानदंड शामिल
संशोधन में कृषि मशीनरी (कृषि ट्रैक्टर, पावर टिलर और संयुक्त हार्वेस्टर) और निर्माण उपकरण वाहनों के लिए अलग-अलग उत्सर्जन मानदंड शामिल हैं. आपको बता दें कि देश में चलने वाली गाड़ी या मशीनरी का एक उत्सर्जन मानक होता है. इसे सरकार तय करती है. इसका मुख्य उद्देश्य वाहनों द्वारा उत्सर्जित किये जाने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करना होता है.
बीएस 6 उत्सर्जन मानक लागू
हाल ही में देशभर में कार समेत अन्य वाहनों के लिए बीएस 6 उत्सर्जन मानक लागू किया गया है. अब सरकार की ओर से कृषि मशीनरी (ट्रैक्टर, पावर टिलर और कम्बाइंड हार्वेस्टर) और निर्माण उपकरण वाहनों के लिए अलग उत्सर्जन नियम लागू किया जाना है.
मेडिसिन नोबेल पुरस्कार 2020: Medicine के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार की घोषणा, जानें किसे मिला यह पुरस्कार
नोबेल पुरस्कार समिति ने ट्वीट कर बताया कि विश्व के लोगों में रक्त-जनित हेपेटाइटिस, सिरोसिस और यकृत कैंसर का कारण बनता है. इसके खिलाफ लड़ाई में इन तीनों लोगों ने निर्णायक योगदान दिया.
साल 2020 में चिकित्सा के क्षेत्र में प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार विजेता का घोषणा हो गया है. इस साल यह पुरस्कार हेपेटाइटिस ‘सी’ वायरस की खोज करने वाले हार्वी जे ऑल्टर, माइकल ह्यूटन और चार्ल्स एम राइस को दिया जाएगा. आपको बता दें कि नोबेल फाउंडेशन की तरफ से यह अवॉर्ड दिया जाता है.
नोबेल पुरस्कार समिति ने ट्वीट कर बताया कि विश्व के लोगों में रक्त-जनित हेपेटाइटिस, सिरोसिस और यकृत कैंसर का कारण बनता है. इसके खिलाफ लड़ाई में इन तीनों लोगों ने निर्णायक योगदान दिया. नोबेल पुरस्कार देने वाली कमेटी ने कहा कि इन वैज्ञानिकों की खोज ने लाखों लोगों की जान बचाई है.
इन पुरस्कारों की घोषणा हर साल की तरह से इस बार भी स्वीडन के स्टॉकहोम शहर में की गई. इसी हफ्ते अन्य नोबेल पुरस्कारों की घोषणा की जाएगी. यह पुरस्कार फिजियोलॉजी या चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में उत्कृष्ठ खोज करने वाले वैज्ञानिकों को सालाना तौर पर दिया जाता है.
हेपेटाइटिस सी
हेपेटाइटिस ‘सी’ वायरस से लीवर कैंसर होता है और यह एक बहुत बड़ा कारण है कि लोगों को लीवर ट्रांसप्लांट करवाना पड़ता है. नोबेल कमेटी के अनुसार 1960 के दशक में किसी से ख़ून लेना ऐसा ही ख़तरनाक था कि आपकी जान भी जा सकती थी. नोबेल कमेटी ने कहा कि इतिहास में पहली बार अब इस बीमारी का इलाज किया जा सकता है, जिससे दुनिया से हेपेटाइटिस सी वायरस ख़त्म करने की उम्मीद बढ़ गई है.
जानें नोबेल पुरस्कार जीतने वाले वैज्ञानिकों के बारे में
हार्वी जेम्स ऑल्टर: हार्वी जेम्स ऑल्टर एक अमेरिकी चिकित्सा शोधार्थी, वायरोलॉजिस्ट और फिजिशियन हैं. ऑल्टर वारेन ग्रांट मैग्नसन क्लिनिरल सेंटर के ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग में रिसर्च के लिए एसोसिएट डायरेक्टर और संक्रामक रोग सेक्शन के प्रमुख हैं. हार्वी जेम्स ऑल्टर का जन्म अमेरिका के न्यूयॉर्क सिटी में 12 सितंबर 1935 को हुआ था. उन्होंने साल 1956 में यूनिवर्सिटी ऑफ रोचेस्टर के कला में स्नातक की डिग्री ली थी. उन्होंने इसके बाद साल 1960 में उसी यूनिवर्सिटी से चिकित्सा की डिग्री ली. हेपेटाइटिस सी वायरस की खोज को संभव बनाने में अहम योगदान देने वाली उनकी खोजों के लिए उन्हें कई पुरस्कारों और सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है.
माइकल ह्यूटन: माइकल ह्यूटन एक ब्रिटिश वायरोलॉजिस्ट हैं जो फिलहाल यूनिवर्सिटी ऑफ अल्बर्टा में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. माइकल ह्यूटन का जन्म यूनाइटेड किंगडम में 1950 के दशक में हुआ था. उन्होंने 17 साल की आयु में लुई पाश्चर के बारे में पढ़ने के बाद माइक्रोबायोलॉजिस्ट बनने का फैसला किया था. कई पुरस्कारों से सम्मानित किए जा चुके ह्यूटन ने साल 1972 में यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया से बायोलॉजिकल साइंसेज में डिग्री ली और साल 1977 में किंग्स कॉलेज लंदन से बायोकेमिस्ट्री में पीएचडी पूरी की थी.
चार्ल्स एम राइस: चार्ल्स एम राइस एक अमेरिकी वायरोलॉजिस्ट हैं. राइस फिलहास न्यूयॉर्क में स्थित रॉकफेलर यूनिवर्सिटी में अपनी सेवाएं रहे हैं. चार्ल्स एम राइस का जन्म 25 अगस्त 1952 को सैक्रामेंटो में हुआ था. उन्होंने साल 1974 में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया से प्राणि विज्ञान (जूलॉजी) से स्नातक किया था और साल 1981 में कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से बायोकेमिस्ट्री में पीएचडी पूरी की थी, यहां उन्होंने आरएनए वायरसों पर अध्ययन किया था. वे साल 2003 से 2007 तक जर्नल ऑफ एक्सपेरिमेंटल मेडिसिन के एडिटर रहे.
नोबेल पुरस्कार के बारे में
यह पुरस्कार फिजियोलॉजी या चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में उत्कृष्ठ खोज करने वाले वैज्ञानिकों को सालाना तौर पर दिया जाता है. यह पुरस्कार डायनामाइट का आविष्कार करने वाले स्वीडन के महान वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल की स्मृति में शुरू किया गया था. पुरस्कार के विजेता को प्रशस्ति पत्र के साथ 10 लाख डॉलर की राशि प्रदान की जाती है. प्रत्येक वर्ष विज्ञान, साहित्य के क्षेत्र में महान अविष्कार करने वाले वैज्ञानिकों को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है.
यह पुरस्कार रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंस की ओर से प्रदान किया जाता है. नोबेल फाउंडेशन की स्थापना 29 जून 1901 में हुई थी. इस फाउंडेशन का मुख्य उद्देश्य नोबेल प्राइज का आर्थिक संचालन करना है. इस फाउंडेशन में कुल 5 लोग होते हैं. स्वीडन का किंग ऑफ काउंसिल इस फाउंडेशन के मुखिया का चयन करता है. हर वर्ष अक्टूबर में नोबेल पुरस्कार की घोषणा होती है.