Nobel Prize 2020: अमेरिका की लुईस ग्लूक को मिला साहित्य का नोबेल पुरस्कार
स्वीडिश एकेडमी ने कहा कि कवयित्री लुईस को उनकी बेमिसाल काव्यात्मक आवाज के लिए यह सम्मान दिया गया, जो खूबसूरती के साथ व्यक्तिगत अस्तित्व को सार्वभौमिक बनाता है.
साहित्य में नोबेल पुरस्कार 2020 के पुरस्कारों की घोषणा हुई. यह पुरस्कार अमेरिकी कवयित्री लुईस ग्लूक को दिया गया. स्वीडिश एकेडमी ने कहा कि कवयित्री लुईस को उनकी बेमिसाल काव्यात्मक आवाज के लिए यह सम्मान दिया गया, जो खूबसूरती के साथ व्यक्तिगत अस्तित्व को सार्वभौमिक बनाता है.
यह पुरस्कार कई साल के विवाद के बाद दिया गया है. अमेरिकी कवि लुईस ग्लक ने साहित्य में 2020 का नोबेल पुरस्कार जीता है. इसकी जानकारी स्वीडिश एकेडमी ने 08 अक्टूबर 2020 को दी. स्टाकहोम में ‘स्वीडिश अकेडमी ऑफ साइंसेज’ के पैनल ने विजेताओं की घोषणा की. इसके पहले लगातार तीन दिन चिकित्सा, भौतिकि और रसायन विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार घोषित किए जा चुके हैं.
लुईस ग्लूक के बारे में
बता दें कि लुईस ग्लूक बेहद सम्मानित साहित्यकार हैं. वो सामाजिक मुद्दों पर भी काफी सक्रिय रहती हैं. लुईस येल यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी की प्रोफेसर हैं. उनका जन्म 1943 में न्यूयॉर्क में हुआ था.
कोविड -19 के कारण भारत की अर्थव्यवस्था में वित्त वर्ष 21 में आ सकती है 9.6 प्रतिशत तक मंदी: विश्व बैंक
विश्व बैंक की एक रिपोर्ट, जिसका शीर्षक ‘बीटन या ब्रोकन? अनौपचारिकता और कोविड -19’ है, में दक्षिण एशिया क्षेत्र में आर्थिक मंदी पूर्व अननुमानित अपेक्षित मंदी की तुलना में कहीं अधिक है
उनके नोबेल प्रशस्ति पत्र में कहा गया कि उनके लेखन में बाद की पुनरावृत्ति के लिए इन तीन विशेषताओं में एकजुट होना दिखाई देता ह्रै. लुईस ग्लुक के कविता के बारह संग्रह और कुछ संस्करणों को प्रकाशित हुए हैं. उनकी कविताओं में खुद के सपनों और भ्रमों के बारे में जो कुछ बचा है, उसे कहा गया है.
2019 में यह पुरस्कार पीटर हैंडका को दिया गया था
साल 2019 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार आस्ट्रियाई मूल के लेखक पीटर हैंडका को दिया गया था. उन्हें यह पुरस्कार इनोवेटिव लेखन और भाषा में नवीनतम प्रयोगों के लिए दिया गया था.
विश्व में 116 नोबेल साहित्य विजेता हैं
साल 1913 में रवींद्रनाथ टैगोर को गीतांजली के लिए साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया. इस पुरस्कार को पाने वाले वो ना सिर्फ पहले भारतीय बल्कि पहले गैरयूरोपीय साहित्यकार भी थे. 1901 से लेकर अब तक कुल 112 नोबेल पुरस्कार दिए गए हैं और इस बीच सात साल ऐसे रहे जब ये पुरस्कार नहीं दिए गए. कुल मिला कर विश्व में 116 नोबेल साहित्य पुरस्कार विजेता हैं.
विश्व बैंक ने इस 8 अक्टूबर, 2020 को यह कहा है कि, कोविड -19 महामारी के कारण चालू वित्त वर्ष (2020-21) में भारत की अर्थव्यवस्था में 9.6 प्रतिशत तक मंदी आने की उम्मीद है. भारत की अर्थव्यवस्था दक्षिण एशिया में सबसे बड़ी है.
विश्व बैंक ने अपने एक अर्द्धवार्षिक क्षेत्रीय अपडेट में यह कहा है कि, इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्थाओं पर कोविड -19 के विनाशकारी प्रभावों के लंबे समय तक बने रहने के कारण, दक्षिण एशिया अपनी अभी तक की सबसे खराब आर्थिक मंदी झेलने के लिए तैयार है. यह अनौपचारिक श्रमिकों को काफी बुरी तरह प्रभावित करेगा और दक्षिण एशिया के लाखों लोगों को अत्यधिक गरीबी में धकेल देगा.
विश्व बैंक की एक रिपोर्ट, जिसका शीर्षक ‘बीटन या ब्रोकन? अनौपचारिकता और कोविड -19’ है, में दक्षिण एशिया क्षेत्र में आर्थिक मंदी पूर्व अननुमानित अपेक्षित मंदी की तुलना में कहीं अधिक है.
मुख्य विशेषताएं
विश्व बैंक की इस रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में 6 प्रतिशत सालाना की वृद्धि के बाद, वर्ष 2020 में दक्षिण एशिया की क्षेत्रीय वृद्धि में 7.7 प्रतिशत तक मंदी आने की संभावना है. हालांकि, वर्ष 2021 में यहां के क्षेत्रीय विकास में 4.5 प्रतिशत की प्रतिपूर्ति होने का अनुमान है.
जनसंख्या में वृद्धि होने के कारण, इस क्षेत्र में प्रति-व्यक्ति आय वर्ष 2019 के अनुमान से 6 प्रतिशत तक कम रहेगी. यह इंगित करता है कि महामारी से होने वाली स्थायी आर्थिक क्षति की भरपाई यह अपेक्षित पलटाव (इकनोमिक रिबाउंड) नहीं करेगा.
विश्व बैंक की इस रिपोर्ट में आगे यह कहा गया है कि, पिछली आर्थिक मंदी के मामले में, निवेश और निर्यात गिरने से मंदी का सामना करना पड़ा था, लेकिन इस बार यह अलग है क्योकि निजी खपत, जो परंपरागत रूप से दक्षिण एशिया में मांग की रीढ़ होने के साथ ही आर्थिक कल्याण का एक प्रमुख संकेतक भी है, इसमें 10 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आएगी जिससे गरीबी दर में और वृद्धि होगी.
इसके अलावा, कुछ देशों में सबसे गरीब लोगों की आजीविका के नुकसान में तेज़ी आने के कारण, निधि के अंतरण और भुगतान में गिरावट की भी उम्मीद है.
दक्षिण एशिया क्षेत्र के लिए विश्व बैंक के उपाध्यक्ष, हार्टविग स्केफर के अनुसार, कोविड -19 के दौरान दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्थाओं का पतन प्रत्याशित मंदी से कहीं अधिक हानिकारक रहा है, जिसका सबसे बुरा असर छोटे व्यवसायों और अनौपचारिक श्रमिकों पर पड़ा है जो अचानक नौकरी छूटने और मजदूरी न मिलने का दंड भुगत रहे हैं.
स्केफर ने यह भी कहा कि, “हालांकि तत्काल राहत ने इस महामारी के प्रभावों को थोड़ा कम कर दिया है, लेकिन अभी भी सरकारों को अपने अनौपचारिक क्षेत्रों की गंभीर कमजोरियों को स्मार्ट नीतियों के माध्यम से दूर करना चाहिए और अपने दुर्लभ संसाधनों को बुद्धिमानी से आवंटित करना चाहिए.”
महत्व
दक्षिण एशिया में सभी श्रमिकों का लगभग तीन-चौथाई हिस्सा, विशेष रूप से आतिथ्य, खुदरा व्यापार और परिवहन जैसे क्षेत्रों में, अनौपचारिक रोजगार पर निर्भर है और ये क्षेत्र कोविड -19 रोकथाम उपायों से सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं.
विश्व बैंक की इस रिपोर्ट में यह चेतावनी दी गई है कि, अनौपचारिक श्रमिकों और फर्मों के पास कोविड – 19 के अप्रत्याशित परिमाण का सामना करने के लिए बहुत कम क्षमता है. बढ़ती हुई खाद्य कीमतों के कारण, गरीबों को भारी नुकसान उठाना पड़ा, इस आय की गिरावट के बीच कोविड -19 संकट ने कई अनौपचारिक श्रमिकों को एक और झटका दिया है जिनकी आय में काफी गिरावट आ गई है. इस रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि, केवल कुछ अनौपचारिक श्रमिकों को ही सामाजिक बीमा द्वारा कवर किया जाता है या फिर, उनके पास बचत होती हिया या उनकी वित्त तक पहुंच होती है.
सुझाव
विश्व बैंक की यह रिपोर्ट सरकारों से सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा के साथ-साथ अधिक उत्पादकता, कौशल विकास और मानव पूंजी का समर्थन करने वाली नीतियों को तैयार करने का आग्रह करती है.
इस रिपोर्ट के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय और घरेलू वित्तपोषण हासिल करने से, सरकारों को वसूली को गति देने के लिए, महत्वपूर्ण कार्यक्रमों को निधि सहायता देने में मदद मिलेगी.
इसके अलावा, दीर्घकालिक अवधि में, अगर देश सभी के लिए डिजिटल पहुंच में सुधार करते हैं और श्रमिकों को ऐसे डिजिटल प्लेटफार्मों का लाभ उठाने में सक्षम बनाते हैं तो ये डिजिटल प्रौद्योगिकियां अनौपचारिक श्रमिकों के लिए नए अवसर पैदा करने, दक्षिण एशिया को और अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने और बाजारों कें साथ बेहतर तरीके से एकीकृत करने में एक आवश्यक भूमिका निभा सकती हैं
दिल्ली सरकार का बड़ा फैसला, अब दिल्ली में 24 घंटे खुलेंगे रेस्तरां
दिल्ली सरकार के अनुसार, व्यापार करने में आसानी के दिल्ली मॉडल का उदाहरण पेश करते हुए सरकार ने यह भी कहा कि वह रेस्तरां के लिए पुलिस लाइसेंस और स्थानीय निकायों से स्वास्थ्य व्यापार लाइसेंस लेने की अनिवार्यता को भी समाप्त करने की प्रक्रिया शुरू कर रही है.
दिल्ली सरकार ने 07 अक्टूबर 2020 को कहा कि अब वे चौबीसों घंटे खुले रह सकते हैं और इसके लिए पर्यटन लाइसेंस की आवश्यकता नहीं है. इस संबंध में 07 अक्टूबर को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली सचिवालय में आयोजित नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एनआरएआइ) के साथ हुई बैठक में फैसले लिए.
इस बैठक में उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के अतिरिक्त दिल्ली सरकार के कई मंत्री, मुख्य सचिव, तीनों निगम, दिल्ली पुलिस लाइसेंस विभाग (डीपीएलडी), दिल्ली पर्यटन, उत्पाद शुल्क समेत संबंधित सभी विभागों के अधिकारी मौजूद रहे.
दिल्ली सरकार के अनुसार, व्यापार करने में आसानी के दिल्ली मॉडल का उदाहरण पेश करते हुए सरकार ने यह भी कहा कि वह रेस्तरां के लिए पुलिस लाइसेंस और स्थानीय निकायों से स्वास्थ्य व्यापार लाइसेंस लेने की अनिवार्यता को भी समाप्त करने की प्रक्रिया शुरू कर रही है.
समिति का गठन
मुख्यमंत्री ने एक समिति का गठन किया है जो कि 10 दिन में अपनी रिपोर्ट देगा. यह समिति परमिट राज खत्म करने और पूरी लाइसेंस प्रक्रिया को सरल बनाने हेतु अपनी सिफारिश देगी. बैठक में एमसीडी से मिलने वाले हेल्थ ट्रेंड लाइसेंस व पुराने रेस्टोरेंट के संरचनात्मक बदलाव को लेकर भी छूट सरकार से मांगी गई है.
इससे होने वाले फायदे
सरकार का कहना है कि इन कदमों से उद्योग की मांग बढ़ेगी, उससे रोजगार के अवसर पैदा होंगे. बयान के मुताबिक, ‘‘रेस्तरां मालिकों के चौबीसों घंटे व्यापार करने के अनुरोध पर, उन्हें इस शर्त पर चौबीसों घंटे काम करने की अनुमति दी गई है कि वे अपने सभी कर्मचारियों के स्वास्थ्य और सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी लेंगे.”
15 अक्टूबर से सिनेमा हॉल भी खुलेंगे
बयान के अनुसार, मुख्यमंत्री ने निर्देश दिया है कि स्थानीय निकायों द्वारा रेस्तराओं को जारी किया जाने वाला लाइसेंस 10 दिन के भीतर समाप्त कर दिया जाए. बताते चलें कि दिल्ली में 15 अक्टूबर से सिनेमा हॉल भी खुल सकेंगे. सिनेमाघर अपनी सिटिंग कैपेसिटी के 50 प्रतिशत तक ही दर्शक बैठा सकेंगे. किसी भी कन्टेनमेंट जोन में कोई सिनेमाघर नहीं खुलेगा.
रात 11 बजे के बाद खोलने पर देना होगा अंडरटेंकिग
दिल्ली में रातभर रेस्टोरेंट खोलने की मंजूरी तो दे दी गई है. मगर शर्त रखा गया है कि अगर कोई रात के 11 बजे के बाद अपना रेस्टोरेंट खोलना चाहता है कि उसे अंडरटेकिंग देनी होगी कि वो अपने कर्मचारियों आदि की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखेंगे. सरकार का कहना है कि रेस्टोरेंट संचालक को सभी के सुरक्षा की जिम्मेदारी लेनी होगी.
केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का निधन
रामविलास पासवान लंबे समय से बीमार चल रहे थे. उन्होंने राजनीति में एक लंबा समय बिताया है
केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान का 08 अक्टूबर 2020 को निधन हो गया है. वे 74 साल के थे. इस बात की जानकारी उनके बेटे व लोजपा के अध्यक्ष चिराग पासवान ने दी. उन्होंने ट्वीट कर कहा कि पापा….अब आप इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन मुझे पता है आप जहां भी हैं हमेशा मेरे साथ हैं.
रामविलास पासवान लंबे समय से बीमार चल रहे थे. उन्होंने राजनीति में एक लंबा समय बिताया है. रामविलास पासवान वीपी सिंह, एचडी देवेगौड़ा, इंद्रकुमार गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी इन सभी प्रधानमंत्रियों के ‘कैबिनेट’ में अपनी जगह बनाने वाले शायद एकमात्र व्यक्ति थे.
आपको बता दें कि केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का दिल्ली के एक अस्पताल में इलाज चल रहा था. अभी कुछ दिनों पहले ही उनके दिल का एक ऑपरेशन भी हुआ था. यह बात भी चिराग पासवान ने ही ट्वीट कर शेयर की थी. केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के निधन की खबर फैलते ही बिहार में शोक की लहर छा गयी है.
रामविलास पासवान: एक नजर में
राजनीति की नब्ज पकड़ने वाले रामविलास पासवान पहली बार 1969 में एक आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य के रूप में बिहार विधानसभा पहुंचे थे. साल 1974 में राज नारायण और जेपी के प्रबल अनुयायी के रूप में लोकदल के महासचिव बने थे. वे व्यक्तिगत रूप से राज नारायण, कर्पूरी ठाकुर और सत्येंद्र नारायण सिन्हा जैसे आपातकाल के प्रमुख नेताओं के करीबी रहे हैं.
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री ने लालू प्रसाद यादव ने रामविलास पासवान को ‘मौसम वैज्ञानिक’ का नाम दिया था. रामविलास पासवान हवा के रुख के साथ राजनीति के अपने फैसले बदलने में माहिर थे. रामविलास पासवान पिछले पांच दशक से भी ज्यादा वक्त से राजनीतिक में सक्रिय थे और देश के सबसे बड़े दलित नेताओं में उनकी पहचान होती थी.
वे 9 बार लोकसभा और दो बार राज्यसभा सांसद रहे. रामविलास पासवान मोदी सरकार में उपभोक्ता मंत्री थे. रामविलास पासवान का जन्म पांच जुलाई 1946 को बिहार के खगड़िया जिले एक गरीब और दलित परिवार में हुआ था.
उन्होंने बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी झांसी से एमए और पटना यूनिवर्सिटी से एलएलबी की. साल 1969 में पहली बार पासवान बिहार के राज्यसभा चुनाव में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के कैंडिडेट के तौर पर चुनाव जीते. साल 2000 में पासवान ने जनता दल यूनाइटेड से अलग होकर लोक जन शक्ति पार्टी का गठन किया.