विश्व शिक्षक दिवस का इतिहास
यूनेस्को नेविश्व शिक्षक दिवस की शुरुआत साल 1994 में की थी. यह दिन तभी से संसार के सभी देशों में एकजुट होकर मनाया जाता है.
पुरे विश्वभर में 05 अक्टूबर को विश्व शिक्षक दिवस (World Teachers Day) मनाया जाता है. इसे अंतरराष्ट्रीय शिक्षक दिवस (International Teachers Day) के रूप में भी जाना जाता है. यह दिवस दुनिया में शिक्षकों की स्थिति में सुधार लाने के उद्देश्य से मनाया जाता है. यूनेस्को और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के बीच वर्ष 1966 में हुई बैठक में इसका निर्णय लिया गया था.
विश्व शिक्षक दिवस न केवल शिक्षकों के लिए बल्कि छात्रों के लिए भी एक विशेष दिन है. इस दिन, शिक्षकों और सेवानिवृत्त शिक्षकों को उनके विशेष योगदान के लिए सम्मानित किया जाता है. हरेक साल यूनिसेफ, यूएनडीपी, अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन और शिक्षा अंतरराष्ट्रीय द्वारा एक साथ मिलकर विश्व शिक्षक दिवस के कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है.
यूनेस्को और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा साल 1966 में शिक्षकों के अधिकारों, जिम्मेदारियों, रोजगार और आगे की शिक्षा के साथ सभी गाइडलाइन बनाने की बात कही गई थी. बता दें कि संयुक्त राष्ट्र (UN) ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा के क्षेत्र में उपलब्धियों को जानने तथा उससे जुड़ी समस्याओं को पहचानने हेतु साल 2030 का लक्ष्य रखा है.
विश्व शिक्षक दिवस 2020 का थीम
विश्व शिक्षक दिवस 2020 की थीम ‘टीचर्सः लीडिंग इन क्राइसिस, रीइमेजनिंग द फ्यूचर’ है.
विश्व शिक्षक दिवस का इतिहास
विश्व शिक्षक दिवस 05 अक्टूबर को प्रत्येक साल पूरी दुनिया में मनाये जाने लगा है. विश्व शिक्षक दिवस की शुरुआत साल 1994 में हुई थी. संयुक्त राष्ट्र ने विश्व शिक्षक दिवस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाने हेतु साल 1994 में यूनेस्को की सिफारिश पर लगभग 100 देशों के समर्थन देने के बाद इस बिल को पारित किया था. विश्व शिक्षक दिवस इसके बाद 05 अक्टूबर को मनाये जाने की शुरुआत हो गई.
विश्व शिक्षक दिवस का महत्व
यूनेस्को और अंतरराष्ट्रीय शिक्षा (ईआई) विश्व शिक्षक दिवस मनाने हेतु प्रत्येक साल एक अभियान चलाता है जिससे की लोगों को शिक्षकों की बेहतर समझ तथा छात्रों और समाज के विकास में उनकी भूमिका निभाने में सहायता मिल सके.
Indian Army ने गलवान झड़प में शहीद हुए सैनिकों के सम्मान में लद्दाख में बनाया स्मारक
इस स्मारक पर थल सेना के सभी 20 शहीद कर्मियों के नाम लिखे गए हैं. झड़प में शहीद हुए सैन्य कर्मियों में कर्नल बी संतोष बाबू भी शामिल थे जो 16वीं बिहार रेजीमेंट से थे.
भारतीय थल सेना ने हाल ही में पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में 15 जून को चीनी सैनिकों के साथ झड़प में शहीद हुए अपने 20 कर्मियों के सम्मान में एक स्मारक बनाया है. यह स्मारक पूर्वी लद्दाख के पोस्ट 120 में स्थित है. इस युद्ध मेमोरियल में उन सभी जवानों के नाम लिखे गए हैं, जो 15 जून को चीनी सैनिकों के साथ संघर्ष में शहीद हो गए थे.
इस स्मारक पर थल सेना के सभी 20 शहीद कर्मियों के नाम लिखे गए हैं. झड़प में शहीद हुए सैन्य कर्मियों में कर्नल बी संतोष बाबू भी शामिल थे जो 16वीं बिहार रेजीमेंट से थे. स्मारक पर 20 सैन्य कर्मियों की सूची में तीन नायब सूबेदार, तीन हवलदार और 12 सिपाही शामिल हैं. इस पर ‘स्नो लियोपार्ड’ (हिम तेंदुआ) अभियान के तहत ‘गलवान के वीरों’ के बहादुरी भरे कारनामों का उल्लेख किया गया है.
मुख्य-बिंदु
• इस स्मारक पर यह भी उल्लेख किया गया है कि किस तरह से भारतीय सैनिकों ने ‘चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ‘ (पीएलए) को झड़प में भारी नुकसान पहुंचाते हुए इलाके को मुक्त कराया.
• स्मारक पर 20 सैन्य कर्मियों की सूची में तीन नायब सूबेदार, तीन हवलदार और 12 सिपाही शामिल हैं.
• गलवान झड़प के बाद चीन से लगी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर दोनों देशों के बीच पैदा हुआ गतिरोध अब भी कायम है.
• हालांकि, दोनों देशों के बीच कूटनीतिक एवं सैन्य वार्ता हुई है लेकिन गतिरोध समाप्त करने के लिये अब तक कोई सफलता नहीं मिल सकी है.
रिपोर्ट्स के अनुसार, गलवान घाटी झड़प में चीनी सैनिकों ने भारतीय सैन्य कर्मियों पर पत्थरों, कील लगे डंडों, सरिया आदि से नृशंस हमला किया था. दरअसल, भारतीय सैनिकों ने घाटी में गश्ती बिंदु (पीपी) 14 के आसपास चीन द्वारा एक निगरानी चौकी स्थापित किये जाने का विरोध किया था. सेना ने स्मारक के फलक पर ‘स्नो लियोपार्ड’ अभियान का संक्षिप्त विवरण भी दिया है.
हिमाचल प्रदेश में पर्यटन का नया आकर्षण बनी अटल सुरंग.
मनाली से लेह को जोड़ने वाली अटल सुरंग दुनिया की सबसे लंबी हाइवे टनल है. इस सुरंग में हर 60 मीटर की दूरी पर सीसीटीवी कैमरे लगाए गए है.
हिमाचल प्रदेश में अटल सुरंग बनने के बाद पर्यटकों की भीड़ बढ़नी भी शुरू हो गई है. हाल ही में बड़ी संख्या में टनल ने पर्यटकों को आकर्षित किया. दस हजार फुट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित यह विश्व की सबसे लंबी सुरंग है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जनता के लिए खोले जाने के एक दिन बाद यह पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन गई है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सामरिक रूप से महत्वपूर्ण सभी मौसम में खुली रहने वाली अटल सुरंग का 03 अक्टूबर 2020 को सुबह हिमाचल प्रदेश के रोहतांग में उद्घाटन किया था. इस अटल सुरंग के खुल जाने की वजह से मनाली और लेह के बीच की दूरी 46 किलोमीटर कम हो गई. पहले घाटी छह महीने तक भारी बर्फबारी के कारण शेष हिस्से से कटी रहती थी.
बता दें कि पहले इसका नाम रोहतांग सुरंग था, जिसे बाद में बदलकर देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर अटल सुरंग कर दिया गया. इसे पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की याद में ‘अटल रोहतांग टनल’ नाम दिया गया है. हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्पीति जिले में मनाली-लेह राजमार्ग पर अत्यधिक ऊंचाई पर स्थित दुनिया की सबसे लंबी सुरंग बन कर तैयार हो गई है.
अटल टनल की खासियत
मनाली से लेह को जोड़ने वाली अटल सुरंग दुनिया की सबसे लंबी हाइवे टनल है. इस सुरंग में हर 60 मीटर की दूरी पर सीसीटीवी कैमरे लगाए गए है. सुरंग के अंदर हर 500 मीटर की दूरी पर आपातकालीन निकास भी बनाए गए हैं. सुरंग के अंदर फायर हाइड्रेंट भी लगाए गए हैं जिससे किसी प्रकार की अनहोनी में इसका इस्तेमाल किया जा सके. सुरंग की चौड़ाई 10.5 मीटर है. इसमें दोनों ओर 1-1 मीटर के फुटपाथ भी बनाए गए हैं.
यह सुरंग महत्वपूर्ण क्यों?
लगभग 3,500 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित अटल टनल रक्षा की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है. इससे मनाली और लेह के बीच दूरी 46 किलोमीटर कम हो जाएगी. साथ ही लाहौल-स्पीति के निवासियों को सर्दियों में इससे बहुत फायदा होगा. अटल टनल के खुलने से हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्पीति और लेह-लद्दाख के बीच हर मौसम में सुचारू रहने वाला मार्ग मिल जाएगा.
सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण छह महीने तक इस हिस्से का देश के शेष भाग से संपर्क टूट जाता है. यह सुरंग इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे पाकिस्तान-चीन बॉर्डर पर भारत की ताकत बढ़ जाएगी. इसके शुरू होने से लद्दाख का इलाका सालभर पूरी तरह से जुड़ा रहेगा.
पृष्ठ-भूमि
रोहतांग दर्रे के नीचे सुरंग बनाए जाने का ऐतिहासिक फैसला 03 जून 2000 को लिया गया था जब अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे. सुंरग के दक्षिणी हिस्से को जोड़ने वाली सड़क की आधारशिला 26 मई 2002 को रखी गई थी. कुल 8.8 किलोमीटर लंबी यह सुरंग 3000 मीटर की ऊंचाई पर बनाई गई दुनिया की सबसे लंबी सुरंग है. साल 2019 में अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर ही सुरंग का नाम अटल अटल रखा गया.