World Ozone Day 2020: ओजोन दिवस का इतिहास और महत्व
विश्व ओजोन दिवस का उद्देश्य विश्वभर के लोगों के बीच पृथ्वी को सूर्य की हानिकार अल्ट्रा वाइलट किरणों से बचाने तथा हमारे जीवन को संरक्षित रखनेवाली ओजोन परत के विषय में जागरूक करना है.
World Ozone Day 2020 (विश्व ओजोन दिवस 2020): प्रत्येक साल विश्व ओजोन दिवस 16 सितंबर को मनाया जाता है. इसका उद्देश्य विश्वभर के लोगों के बीच पृथ्वी को सूर्य की हानिकार अल्ट्रा वाइलट किरणों से बचाने तथा हमारे जीवन को संरक्षित रखनेवाली ओजोन परत के विषय में जागरूक करना है.
ओजोन परत के बिगड़ने से जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा मिलता है. जलवायु परिवर्तन से धरती का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है. जलवायु परिवर्तन से तथा तापमान बढ़ने से कई तरह की बीमारीयां फैल रही हैं. विश्वभर में इस गंभीर संकट को देखते हुए ही ओजोन परत के संरक्षण को लेकर जागरुकता अभियान चलाया जा रहा है.
यह दिवस प्रत्येक साल 16 सितंबर को पूरे दुनिया में मनाया जाता है. पृथ्वी के ऊपर मौजूद ओजोन परत तथा पर्यावरण में उसकी भूमिका के महत्त्व को उजागर करने के लिए प्रत्येक साल विश्व ओजोन दिवस मनाया जाता है. हर साल ओजोन परत के संरक्षण के लिए एक अलग थीम तैयार करके लोगों को इसके महत्व के बारे में जानकारी दी जाती है.
इस दिवस का उद्देश्य और महत्व
विश्व ओजोन दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को धूप में निकलते समय अल्ट्रा वायलेट किरणों से सावधान रहने तथा ओजोन को संरक्षित रखने वाले उत्पादों का इस्तेमाल करने के प्रति जागरूक बनाना है. यह दिवस का आयोजन मुख्यतः ओजोन परत के क्षरण के बारे में लोगों को जागरूक करने एवं इसे बचाने के बारे में समाधान का खोज करने हेतु मनाया जाता है.
विश्व ओजोन दिवस 2020 की थीम
विश्व ओजोन दिवस 2020 की थीम ‘जीवन के लिए ओजोनः ओजोन परत संरक्षण के 35 साल’ क्योंकि इस साल हम वैश्विक ओजोन परत संरक्षण के 35 साल मना रहे हैं. इस ओजोन दिवस की थीम ‘जीवन के लिए ओजोन’ हमें न सिर्फ यह याद दिलाती है कि पृथ्वी पर जीवन के लिए ओजोन महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भी याद रखने की ओर संकेत करती है कि हमें अपनी भावी पीढ़ियों के लिए ओजोन परत की रक्षा करना जारी रखना होगा.
विश्व ओजोन दिवस 2019 की थीम
विश्व ओजोन दिवस 2019 की थीम ’32 years and Healing’ है. इस थीम के जरिए मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के अंतर्गत विश्वभर के देशों द्वारा ओजोन परत के संरक्षण तथा जलवायु की रक्षा हेतु तीन दशकों से किए जा रहे प्रयासों को सिलेब्रेट किया जाएगा.
पहली विश्व ओजोन दिवस
पहली बार विश्व ओजोन दिवस साल 1995 में मनाया गया था. यह दिवस जनता के बारे में पर्यावरण के महत्व तथा इसे सुरक्षित रखने के महत्वपूर्ण साधनों के बारे में शिक्षित करता है. इसे मनाने का उद्देश्य धरती पर ओजोन की परत का संरक्षण करना है.
ओजोन परत एक नजर में
ओजोन परत की खोज साल 1913 में फ्रांस के भौतिकविदों फैबरी चार्ल्स और हेनरी बुसोन ने की थी. ओजोन परत गैस की एक परत है जो पृथ्वी को सूर्य की हानिकारक किरणों से बचाती है. यह गैस की परत सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणों के लिए एक अच्छे फिल्टर (छानकर शुद्ध करना) का काम करती है. यह परत इस ग्रह के जीवों के जीवन की रक्षा करने में सहायता करती है. यह पृथ्वी पर हानिकारक पराबैंगनी किरणों को पहुंचने से रोक कर मनुष्यों के स्वास्थ्य तथा पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करता है.
ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के वैज्ञानिकों ने साल 1985 में सबसे पहले अंटार्कटिक के ऊपर ओजोन परत में एक बड़े छेद की खोज की थी. ओजोन एक हल्के नीले रंग की गैस होती है. ओजोन परत में वायुमंडल के अन्य हिस्सों के मुकाबले ओजोन (O3) की उच्च सांद्रता होती है. यह परत मुख्य रूप से समताप मंडल के निचले हिस्से में पृथ्वी से 20 से 30 किलोमीटर की उंचाई पर पाई जाती है. परत की मोटाई मौसम एवं भूगोल के हिसाब से अलग– अलग होती है.
पराबैगनी किरणों से क्या नुकसान होता है?
पराबैगनी किरण सूर्य से पृथ्वी पर आने वाली एक किरण है जिसमें ऊर्जा बहुत ज्यादा होती है. यह ऊर्जा ओजोन की परत को धीरे-धीरे पतला कर रही है. पराबैगनी किरणों की बढ़ती मात्रा से चर्म कैंसर, मोतियाबिंद के अतिरिक्त शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है. इसका असर जैविक विविधता पर भी पड़ता है तथा कई फसलें नष्ट हो सकती हैं. यह किरण समुद्र में छोटे-छोटे पौधों को भी प्रभावित करती है, जिससे मछलियों और अन्य प्राणियों की मात्रा कम हो सकती है.
विश्व ओजोन दिवस का इतिहास और पृष्ठभूमि
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने साल 1994 में 16 सितंबर को ‘ओजोन परत के संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय ओज़ दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की. इस दिन ओजोन परत के संरक्षण के लिए साल 1987 में बनाए गए मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किया गया था.
वैज्ञानिकों ने शुक्र ग्रह पर अलौकिक जीवन के संभावित संकेतों का पता लगाया
इस अध्ययन के सह-लेखक क्लारा सूसा-सिल्वा के अनुसार, शुक्र ग्रह पर फॉस्फीन को खोजने के लिए सबसे प्रशंसनीय व्याख्या अलौकिक (एक्स्ट्राटेरेस्ट्रियल) जीवन का अस्तित्व है.
वैज्ञानिकों ने इस 14 सितंबर, 2020 को खुलासा किया है कि, उन्होंने निर्जन शुक्र ग्रह पर जीवन के संभावित संकेतों का पता लगाया है. इन वैज्ञानिकों ने शुक्र ग्रह के अम्लीय बादलों में फॉस्फीन नामक एक गैस का पता लगाया है जिससे यह इंगित होता है कि, पृथ्वी के पड़ोसी में जीवाणुओं का वास हो सकता है.
हवाई में जेम्स क्लर्क मैक्सवेल टेलीस्कोप का उपयोग करके एक अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक टीम द्वारा शुक्र ग्रह में पहली बार फॉस्फीन की उपस्थिति को देखा गया. इन शोधकर्ताओं ने बाद में चिली में ALMA (अटाकामा लार्ज मिलिमीटर / सबमिलिमिटर एरे) रेडियो टेलीस्कोप का उपयोग करके अपनी इस खोज की पुष्टि की.
यह अध्ययन वैज्ञानिक पत्रिका – नेचर एस्ट्रोनॉमी में प्रकाशित हुआ था.
इस खोज का क्या अर्थ है?
अध्ययन के सह-लेखक क्लारा सूसा-सिल्वा के अनुसार, शुक्र ग्रह पर फॉस्फीन को खोजने के लिए सबसे प्रशंसनीय व्याख्या अलौकिक जीवन का अस्तित्व है. मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में सोसा-सिल्वा आणविक खगोल भौतिकीविद् हैं.
उन्होंने आगे यह बताया कि, यह खोज बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि, “यदि यह फॉस्फीन है, और यदि यह जीवन है, तो इसका मतलब है कि हम अकेले नहीं हैं.” उन्होंने आगे यह भी कहा कि, इसका मतलब है कि, जीवन खुद में एक बहुत सामान्य-सी प्रक्रिया है और हमारी आकाशगंगा में कई अन्य ग्रह जीवन से आबाद होने चाहिए.
फॉस्फीन क्या है?
फॉस्फीन परिवेशी तापमान पर एक ज्वलनशील, रंगहीन और विस्फोटक गैस है जिसमें लहसुन या सड़ने वाली मछली की गंध होती है.
शुक्र ग्रह पर फॉस्फीन की उपस्थिति
• फॉस्फीन का पता शुक्र ग्रह के वायुमंडल के समशीतोष्ण क्षेत्र में 20 भाग – प्रति बिलियन में लगभग 50 किमी की ऊंचाई पर लगाया गया था, यह एक ऐसा संकेंद्रण है जो ज्ञात रासायनिक प्रक्रियाओं से संभव नहीं है, क्योंकि शुक्र ग्रह में उच्च तापमान और फॉस्फीन बनाने के लिए दबाव का अभाव है जिस तरह से अन्य गैस से युक्त विशाल ग्रह जैसेकि बृहस्पति करते हैं.
• इस अध्ययन में यह कहा गया है कि, शुक्र ग्रह पर फॉस्फीन की उपस्थिति के लिए संभावित स्पष्टीकरण कुछ अज्ञात फोटोकैमिस्ट्री या जियोकेमिस्ट्री हो सकते हैं या फिर, पृथ्वी पर PH3 के जैविक उत्पादन के सादृश्य हो सकते हैं – यह जीवन की उपस्थिति से भी संभव हो सकता है.
• इस अध्ययन के प्रमुख लेखक जेन ग्रीव्स ने यह खुलासा किया है कि, शोधकर्ताओं ने अपने शोध में ज्वालामुखी, उल्कापिंड, बिजली और विभिन्न प्रकार की रासायनिक प्रतिक्रियाओं जैसे संभावित गैर-जैविक स्रोतों की भी जांच की, लेकिन इनमें से कोई भी दिखाई नहीं दिया.
अलौकिक जीवन के संभावित संकेत
अंतरिक्ष अध्ययन शुरू किए जाने के बाद से लोकोत्तर जीवन का अस्तित्व विज्ञान के सर्वोपरि प्रश्नों में से एक रहा है. वैज्ञानिकों ने हमारे सौर मंडल और उससे आगे के अन्य ग्रहों और चंद्रमाओं पर “बायोसिग्नेचर्स“ या जीवन के अप्रत्यक्ष संकेतों की तलाश के लिए जांच और दूरबीन का उपयोग किया है.
हालांकि, शुक्र ग्रह हमारे सौर मंडल में जीवन की खोज का केंद्र बिंदु नहीं था. मंगल ग्रह और बाहरी दुनिया के अन्य ग्रह अलौकिक जीवन के संभावित संकेतों का पता लगाने के लिए बड़े पैमाने पर केंद्र बिंदु रहे हैं.
शुक्र ग्रह निर्जन क्यों है?
• सूर्य से दूसरे ग्रह और पृथ्वी के निकटतम पड़ोसी ग्रह, इस शुक्र ग्रह की संरचना ऐसी है जो पृथ्वी की तरह ही है लेकिन पृथ्वी से थोड़ी छोटी है. इस ग्रह को घने, विषैले वातावरण में लिपटे होने के लिए जाना जाता है जो गर्मी को रोकता है. शुक्र ग्रह की सतह का तापमान लगभग 471 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, जोकि इतना अधिक गर्म होता है कि सीसा पिघल जाए. इसलिए, इस ग्रह को जीवन रहित या निर्जन माना जाता है.
• अध्ययन के सह-लेखक क्लारा सूसा-सिल्वा के अनुसार, शुक्र ग्रह की सतह पर बहुत लंबे अरसे पहले जीवन हो सकता था और बहुत समय पहले जब किसी ग्रीनहाउस प्रभाव ने इस ग्रह के विशाल हिस्से को पूरी तरह से निर्जन बना दिया. उन्होंने आगे यह कहा है कि, वे केवल अनुमान लगा सकती हैं कि, अगर शुक्र ग्रह पर जीवन हो सकता है तो क्या वह जीवन बच सकता है.
पृष्ठ-भूमि
शुक्र ग्रह पर जीवन की उपस्थिति की पुष्टि करने के लिए एक नई अंतरिक्ष जांच की आवश्यकता हो सकती है. यह नवीनतम अध्ययन अलौकिक जीवन के निशान खोजने के लिए अंतर्राष्ट्रीय नीति में एक बड़ा बदलाव ला सकता है.
लोकसभा ने आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020 को मंजूरी दी
आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज आलू को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटाने का प्रावधान करता है.
लोकसभा ने 15 सितम्बर 2020 को आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020 को मंजूरी दे दी. कृषि क्षेत्र में सुधार और किसानों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से लोकसभा ने आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन) बिल-2020 पास कर दिया. इस बिल में खाद्य पदार्थों जैसे अनाज, दालें और प्याज को नियंत्रण मुक्त करने का प्रावधान है.
हालांकि, विपक्षी दल ने इस विधेयक का विरोध किया. विपक्षी दल ने केंद्र सरकार से विधेयक और अध्यादेश वापस लेने की मांग की. सरकार की ओर से कहा गया कि इससे निजी निवेशकों को बहुत ज्यादा नियामकीय हस्तक्षेपों (Regulatory Interventions) से निजात मिलेगी.
मुख्य बिंदु
• आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज आलू को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटाने का प्रावधान करता है.
• इससे निजी निवेशकों को उनके व्यापार के परिचालन में अत्यधिक नियामक हस्तक्षेपों की आशंका दूर हो जाएगी.
• उत्पाद, उत्पाद सीमा, आवाजाही, वितरण और आपूर्ति की स्वतंत्रता से बिक्री की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में मदद मिलेगी और कृषि क्षेत्र में निजी क्षेत्र/विदेशी प्रत्यक्ष निवेश आकर्षित होगा.
• उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण राज्यमंत्री रावसाहेब दानवे ने निचले सदन में चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि इस विधेयक के माध्यम से कृषि क्षेत्र में सम्पूर्ण आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत बनाया जा सकेगा, किसान मजबूत होगा और निवेश को बढ़ावा मिलेगा.
• इस विधेयक में ऐसे प्रावधान किये गए है जिससे बाजार में स्पर्धा बढ़ेगी, खरीद बढ़ेगी और किसनों को उचित मूल्य मिल सकेगा.
पृष्ठ-भूमि
संसद ने आवश्यक वस्तु अधिनियम को 1955 में पारित किया था. तब से सरकार इस कानून की मदद से ‘आवश्यक वस्तुओं’ का उत्पादन, आपूर्ति और वितरण नियंत्रित करती है. इससे आवश्यक वस्तुएं उपभोक्ताओं को मुनासिब दाम पर उपलब्ध होती हैं. अब मोदी सरकार का कहना है कि संशोधित विधेयक से उत्पाद, उत्पाद सीमा, आवाजाही, वितरण व आपूर्ति की आजादी मिलेगी और बिक्री की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में मदद मिलेगी. इससे कृषि क्षेत्र में निजी क्षेत्र और विदेशी प्रत्यक्ष निवेश आकर्षित होगा.
योशिहिदे सुगा बने जापान के नए प्रधानमंत्री
योशिहिदे सुगा ने कहा कि वह आबे की नीतियों को ही आगे बढ़ाएंगे और उनकी प्राथमिकता कोरोना वायरस से निपटना और वैश्विक महामारी के दौरान अर्थव्यवस्था बेहतर करना होगा.
जापान की संसद में 16 सितम्बर 2020 को हुए मतदान में योशिहिदे सुगा को औपचारिक तौर पर नया प्रधानमंत्री चुना गया. स्वास्थ्य कारणों के चलते शिंजो आबे ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. गौरतलब है कि शिंजो आबे लंबे समय से पेट से जुड़ी बीमारी से जूझ रहे हैं. योशिहिदे सुगा को 14 सितम्बर 2020 को जापान की सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी का नया नेता चुना गया था और इसके साथ ही उनका प्रधानमंत्री बनना तय हो गया था.
मंत्रिमंडल के प्रमुख सचिव रहे योशिहिदे सुगा लंबे समय से शिंजो आबे के करीबी रहे हैं. जापान के सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे शिंजो आबे ने पिछले महीने घोषणा की थी कि वह स्वास्थ्य कारणों के चलते पद छोड़ेंगे. शिंजो आबे के उत्तराधिकारी को चुनने के लिए हुए आंतरिक मतदान में योशिहिदे सुगा को सत्तारूढ़ लिबरल डेमाक्रेटिक पार्टी में 377 वोट मिले और अन्य दो दावेदारों को 157 वोट हासिल हुए थे.
अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाना मुख्य जिम्मेदारी
योशिहिदे सुगा ने कहा कि वह आबे की नीतियों को ही आगे बढ़ाएंगे और उनकी प्राथमिकता कोरोना वायरस से निपटना और वैश्विक महामारी के दौरान अर्थव्यवस्था बेहतर करना होगा. वे न्यूनतम मजदूरी में बढ़ोतरी, कृषि सुधारों को बढ़ावा देने और पर्यटन को बढ़ावा देकर क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं को पुनर्जीवित करना चाहते हैं.
प्रधानमंत्री मोदी ने दी बधाई
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जापान के नवनियुक्त प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा को बधाई दी. इस दौरान पीएम मोदी ने अंग्रेजी और जपानी भाष में जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा को बधाई संदेश दिया.
योशिहिदे सुगा के बारे में
• योशोहिदे सुगा एक आम किसान के बेटे हैं, उनके पिता स्ट्रॉबेरी की खेती करते थे.
• उनका राजनीतिक सफ़र उस समय शुरू हुआ जब उन्होंने टोक्यो के होसेई यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएशन करने के तुरंत बाद संसदीय चुनाव अभियान के लिए काम किया.
• उन्होंने लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के एक सांसद के सेक्रेटरी के रूप में काम किया. इसके बाद उन्होंने ख़ुद के राजनीतिक सफ़र की शुरुआत की.
• वे साल 1987 में योकोहामा सिटी काउंसिल के लिए चुने गए और वे साल 1996 में पहली बार जापान की संसद के लिए चुने गए.
• उन्हें वर्ष 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जुनिचिरो कोइज़ुमी ने आंतरिक मामलों और संचार विभाग का वरिष्ठ उप मंत्री बनाया था.
• सुगा ने अपने राजनीतिक सफर की लंबी पारी में कई अहम दायित्वों को सफलतापूर्वक निभाया है. जापान की राजनीति में उनका काफी दबदबा रहा है.
Arvind Kumar
sept 16, 2020