सल्तनत काल के प्रारम्भ मे उत्तराधिकार का कोई निश्चित कानून नहीं था । आंतरिक नागरिक युद्ध देश को छोटे छोटे शहरो मे विभाजित कर रहा था। प्रत्येक सुल्तान की मृत्यु के बाद उत्पन्न परिस्थिति ने कई नागरिक युद्धो को जन्म दिया। श्रेष्ठ बनने की होड़ मे, तैमूर और बाबर के आक्रमण दिल्ली सल्तनत के पतन के मुख्य कारण बने। साम्राज्य के इस तरह से पतन होने की वजह से देश के विभिन्न भागो मे कई छोटे राज्यों का उदय हुआ।
राज्य मे नियम और विनियम नहीं था, कोई भी अपने आप को शासक घोषित कर सकता था। वंश और राजशाही का अधिक औचित्य नहीं था। रईसों ने राजा निर्माता का स्थान ग्रहण कर रखा था और कमजोर सुल्तानों को अपने नियंत्रण मे रख कर गद्दी/ सिंहासन पर अपनी पकड़ को बनाए रखा था । वह राज्य जो एक बार अपने न्यायिक और प्रशासनिक गौरव के लिए जाना जाता था अब वह अराजकता और अशांति के अधीन था जो विघटन का मुख्य कारण था। इसने अनेक छोटे कमजोर राज्यों को भी जन्म दिया जो सल्तनत के शासकों के खिलाफ खड़े हुये, जो प्रत्यक्ष तौर पर देश मे विस्तार का कारण रहा।
उनमे से कुछ राज्य इस प्रकार थे
जौनपुर (1401 ईस्वी): इसका उदय मलिक-उश-शर्क के शासन मे हुआ, तैमूर के हमले के बाद शर्क ने इस भ्रम का फायदा उठाया और अपने सत्तारूढ़ शक्ति की पूर्ण स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी। उसके उत्तराधिकारी इतिहास मे शरीकी के रूप मे जाने जाते थे। हुसैन शाह शरीकी वंश का आखिरी शासक था।
मालवा (1435 ईस्वी): इस प्रांत को 1305 ईस्वी मे अलाउद्दीन खिल्जी के सल्तनत के अधीन कर लिया गया। यह अपने राज्यपाल दिहावन खान घूरी (जो एक कमजोर और फीका शासक के रूप मे जाना जाता था) तक मजबूत और एकीकृत रहा, और 1435 ईस्वी मे अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी थी । इस विशाल राज्य का विस्तार सतपुड़ा से गुजरात की सीमाओं और बुंदेलखंड के क्षेत्र से मेवाड़ और बूंदी तक हुआ।
मालवा वर्ष 1531 ईस्वी मे गुजरात का एक एकीकृत अंग बन गया और अंत मे 1562 ईस्वी मे मुगलों द्वारा हड़प लिया गया।
गुजरात (1397 ईस्वी) : 1397 ईस्वी मे मुजफ्फरी राजवंश ने गुजरात का पदभार संभाल लिया जो जफर खान के शासन के अधीन था। मुजफ्फर शाह ने इस सत्तारूढ़ शक्ति के खिलाफ विद्रोह कर दिया और मुजफ्फरी राजवंश की स्थापना किया।
उसने जबरदस्ती सुल्तान मुजफ्फर शाह की उपाधि लिया। उसके अधीन इस वंश ने 1573 ईस्वी तक राज्यों पर नियंत्रण किया। उसके राज्य काल के दौरान उसने निज़ाम शाह बहमनी को नागरिक आक्रामकता से बचाया। बाद मे वह पुर्तगाली सेना के द्वारा मारा गया, और 1573 ईस्वी मे अकबर ने गुजरात को अपने साम्राज्य मे शामिल कर लिया।
राजस्थान:
इस काल के दौरान राजस्थान मे 3 प्रमुख स्वतंत्र राज्य थे:
1. मेवाड़ (1303 ईस्वी)
- 1303 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी द्वारा चित्तौड़ की राजधानी पर कब्जा कर इसे जब्त किया गया था। बाद में उग्र राजपूत राजाओं ने खिलजी को अपने कब्जे में ले लिया था।
- बहादुर राजपूत शासक राणा हामिद ने जल्द ही 1326 ईस्वी में खिलजी के चंगुल से मेवाड़ को छुड़ा लिया था।
- उसे मेवाड़ पर विजय के उपलक्ष्य में चित्तौड़ में प्रसिद्ध ‘विजय स्तंभ’ का निर्माण करने के लिए जाना जाता है।
- छोटी सेना होने की वजह से वह खनुवा मे 1527 ईस्वी मे बाबर से हार गए थे।
- 1615 ईस्वी में मेवाड़ ने जहांगीर के आधिपत्य को स्वीकार कर लिया था।
2. आमेर (या अंबर) (1561 ईस्वी)
- कछुवाह राजपूत जो महान योद्धा और निर्माणकर्ता थे, ने दशवी शताब्दी मे किलों के शहर की स्थापना किया।
- इस तथ्य के अलावा कि अंबर एक राजपूत राज्य था मुगल आधिपत्य को स्वीकार करने वाला यह पहला राज्य था।
- यह एक हकीकत है कि आमेर के शासक भारमल ने अकबर के प्रभुत्व को 1561 मे मान्यता प्रदान की और मुगल साम्राज्य के गरिमा और विस्तार मे अत्यधिक योगदान दिया।
कश्मीर ( 1339 ईस्वी)
कश्मीर के प्रथम मुस्लिम सुल्तान, शाह मिर्ज़ा को शम्स-उद-दिन शाह के नाम से भी जाना जाता था जिसका सिंहासन 1339 ईस्वी मे जब्त कर लिया गया था । मिर्जा को हिंदुओं का उत्पीड़न करने के लिए जाना जाता था जिसके कारण हिंदुओं के हितों की रक्षा के लिए उसे उसके भाई शाह खान के द्वारा अपदस्थ कर दिया गया।
सिकंदर को ज़ैन-उल-अबिदीन की उपाधि से नवाजा गया क्यूकि वह एक योग्य शासक था।
ज़ैन-उल-अबिदीन को “कश्मीर का अकबर” के नाम से भी जाना था। उसने उन ब्राह्मणो को वापस बुलाया जो मिर्जा के विश्वासघात की वजह से कश्मीर छोड़ कर भाग गए थे। उसने महाभारत और राजतरंगिनी का फारसी भाषा मे अनुवाद भी करवाया। कश्मीर के राज्य को अकबर ने 1586 मे हड़प लिया था।
बंगाल:
इख्तियार-उद-दिन मुहम्मद-बिन-बख्तियार खल्जी ने 1204 ईस्वी मे बंगाल को दिल्ली सल्तनत का एक भाग बनाया। लेकिन राजधानी से दूर होने की वजह से दिल्ली से बंगाल पर शासन करने मे हमेशा कठिनाईया उत्पन्न होती थी।
यह ग्याश-उद-दिन तुग़लक के शासन के अधीन था, बंगाल तीन स्वतंत्र प्रशासनिक प्रभाग मे विभाजित किया गया था जिनके नाम क्रमशः लखनौती, सतगांव और सोनारगांव थे।
बंगाल 1410 ईस्वी तक सैफ-उद-दिन हमज़ा शाह के शासन के अधीन था। बाद मे हमज़ा, ग्याश-उद-दिन ने अपने आप को एक स्वतंत्र शासक के रूप मे स्थापित किया।
ग्याश-उद-दिन मुहम्मद शाह वंश का आखिरी राजा था। 1538 ईस्वी मे बंगाल के प्रांत पर शेर शाह सूरी ने कब्जा कर लिया था।
उड़ीसा (1706)
1076 ईस्वी से 1148 ईस्वी तक राजा अनंतवर्मन के अधीन उड़ीसा राज्य ने अपने पूर्ण गौरव और प्रख्याति को देखा। अनंतवर्मन कला और साहित्य के महान संरक्षक थे। वह एक महान विजेता थे जिसे पुरी मे प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर के जीत के रूप मे देखा जाता है। उन्हे कुछ योग्य शासको के द्वारा सफल बनाया गया जब तक कि फिरोज शाह तुग़लक ने राज्य पर आक्रमण और पुरी मे जगन्नाथ मंदिर को अपवित्र नहीं किया था।
कामरूप और असम (1305 ईस्वी)
तेरहवीं शताब्दी तक कामरूप के राज्य का इतिहास स्पष्ट नहीं है। अहोम ने ब्रह्मपुत्र घाटी मे उत्तरी बर्मा से प्रवेश किया और तेरहवी सदी के पहले भाग मे अपने पूर्वी क्षेत्र मे एक राज्य की स्थापना की । इतिहास मे इस वंश के संस्थापक सुकाफा थे। सत्तरहवी शताब्दी मे अहोम राज्य मुगल आक्रमणों का निशाना बने।
खानदेश (1388 ईस्वी)
1388 ईस्वी मे राजधानी बुरहानपुर मे राजा मलिक के योग्य शासन मे, ताप्ती की घाटी मे खानदेश के छोटे राज्य स्वतंत्र हुये। इसके शासक फरुक्की वंश के नाम से जाने गए। उनकी मृत्यु के पश्चात दो राज्य फिर से अलग संस्थाएं बन गए । 1601 ईस्वी मे राज्य पर अकबर ने कब्जा कर था।