मोहम्मद बिन तुगलक (1351 ईश्वी-1388 ईश्वी)
खिलजी प्रशासन के अंतिम शासक खुसरो खान की गजनी मलिक द्वारा हत्या कर दी गयी थी, जो सिंहासन पर आसीन था और गयासुद्दीन तुगलक की उपाधि हासिल कर रखी थी। एक दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गयी और उसका पुत्र जौना (उलूग खान) 1325 में मोहम्मद-बिन-तुगलक की उपाधि के साथ उसका उत्तराधिकारी बना था। उसने 1325 से 1351 तक दिल्ली पर शासन किया था। मोहम्मद-बिन-तुगलक का जन्म मुल्तान के कोटला में हुआ था और दिपालपुर के राजा की पुत्री से उसका विवाह हुआ था।
वह तर्क, दर्शनशास्त्र, खगोल विज्ञान, गणित, सुलेख और भौतिक विज्ञान का विद्वान था। वह तुर्की, संस्कृत, फारसी और अरबी जैसी विभिन्न भाषाओं का अच्छा जानकार था। प्रसिद्ध यात्री इब्न बतूता ने उसके शासनकाल के दौरान भारत का दौरा किया था। वह एक ऐसा उदार सम्राट था जो समानता में विश्वास करता था। उसने जैन समुदाय के लोगों के साथ-साथ हिंदूओं को भी आजादी दे रखी थी।
मोहम्मद बिन तुगलक की एक शासक के रूप में सर्वोच्च पहचान यह थी कि उसने विभिन्न उल्लेखनीय प्रयास किए थे और कृषि के क्षेत्र में एक अलग आकर्षण पैदा किया था। वह धर्म में गहरा विश्वास रखता था और तार्किक एवं ग्रहणशील दृष्टिकोण रखता था। तर्कशक्ति, अंतरिक्ष विज्ञान, मूल कारणों और गणित के प्रति उसकी विशेष रूचि थी। वह मुस्लिम अध्यात्मवादियों के साथ-साथ हिंदू योगियों और जैन धर्म के पवित्र लोगों से बातचीत करता था, उदाहरण के लिए जौनप्रभा सूरी।
मुहम्मद बिन तुगलक के सुधार
उसने कई आधिकारिक परिवर्तन पेश करने का प्रयास किया था। लेकिन इनमें से अधिकतर में वह अपनी खिन्नता और न्याय के अभाव के कारण विफल रहा था।
उसकी पांच विनाशकारी परियोजनाएं
- दोआब में कराधान: सुल्तान ने गंगा और जमुना के बीच दोआब में एक मूर्खतापूर्ण बजट संबंधी परीक्षण किया था। उसने शुल्क दर में बढोत्तरी के साथ-साथ कुछ अतिरिक्त अबवाबों को पुन: प्रचलन में ला दिया था। बावजूद इसके, राज्य की हिस्सेदारी अलाउद्दीन के समय से भी आधी रहने लगी थी।
- राजधानी स्थानांतरण (1327): ऐसा प्रतीत होता है कि सुल्तान देवगिर को अपनी दूसरी राजधानी बनाना चाहता था जिससे वह बेहतर तरीके से दक्षिण भारत पर नियंत्रित स्थापित कर सके। देवगिर का नाम बदलकर दौलताबाद रख दिया गया था। दो या तीन साल के बाद ही मुहम्मद तुगलक दौलताबाद को छोड़ना चाहता था क्योंकि उसे आभास हो गया था कि जिस आधार पर उसने दौलताबाद को चुना था उससे वह दिल्ली से दक्षिण भारत पर नियंत्रण नहीं रख सकता है और न ही वह
दौलताबाद से उत्तर पर नियंत्रण रख सकता है। - टोकन मुद्रा का आरम्भ (1330): मुहम्मद ने तुगलक तांबे के सिक्के चलन में लाने का फैसला किया जिनकी कीमत चांदी के सिक्कों के बराबर ही थी। हो सकता है कि मोहम्मद तुगलक का नये सिक्कों की ढलाई से आम लोगों को दूर रखने का यह एक प्रभावी दृष्टिकोण रहा हो लेकिन वह ऐसा करने में नाकामयाब रहा था और जल्द ही अविश्वसनीय रूप से नये सिक्कों का कारोबारी भाव गिरने लगा।
- खुर्सी अभियान: सुल्तान का चारों ओर व्यापक जीत का एक सपना था। उसने खुर्सी और इराक को विजय के चुना और इस कारण एक विशाल सेना को सक्रिय कर दिया था। उसको इस अभियान से निराशा हाथ लगी थी।
- कराची अभियान: यह अभियान चीनी हमलों का मुकाबला करने के लिए चलाया गया था। इससे उसके मन में एक विचार ने जन्म लिया जिसका उद्देश्य कुमाऊं-गढ़वाल जिलों में कुछ दुराग्रही जनजातियों को समन्वित कर उन्हें दिल्ली
सल्तनत के अधीन लाना था।इन परियोजनाओं ने मदुरै और वारंगल की स्वतंत्रता और विजयनगर और बहमनी की नींव रखने के लिए देश के कई हिस्सों में विद्रोहों को जन्म दिया था।अंत में एक तुर्की गुलाम के खिलाफ सिंध में से जूझते समय थट्टा में उसकी मृत्यु हो गयी थी।तुगलक वंश गयासुद्दीन तुगलक 1320-24 ईस्वी मोहम्मद तुगलक 1324-51 ईस्वी फिरोज शाह तुगलक 1351-88 ईस्वी मोहम्मद खान 1388 ईस्वी गयासुद्दीन तुगलक शाह II 1388 ईस्वी अबू बकर 1389-90 ईस्वी नसीरुद्दीन मोहम्मद 1390-94 ईस्वी हूंमायू 1394-95 ईस्वी नसीरुद्दीन महमूद 1395-1412 ईस्वी