खिलजी वंश के तहत आर्थिक नीति और प्रशासन

खिलजी वंश के तहत आर्थिक नीति और प्रशासन

खिलजी शासकों ने मध्य एशिया में अपने वंश की छाप छोड़ी थी और ये तुर्की मूल के थे। भारत में दिल्ली आने से पहले वे वर्तमान के अफगानिस्तान में लंबे समय तक रहे थे। जलाल-उद-दीन फिरोज खिलजी, अलाउद्दीन खिलजी, मलिक काफूर, शिहाब-उद-दीन उमर, मुबारक शाह, खुसरो खान और गाजी मलिक कुछ महत्वपूर्ण खिलजी शासकों में से एक थे।

खिलजी शासकों ने मध्य एशिया में अपने वंश की छाप छोड़ी थी और ये तुर्की मूल के थे। भारत में दिल्ली आने से पहले वे वर्तमान के अफगानिस्तान में लंबे समय तक रहे थे। खिलजी वंश के महत्वपूर्ण शासक थे:

  1. जलाल उद दीन खिलजी: तुर्की, फारसी, अरबी जनसमूहों के एक मुस्लिम मुखियाओं के समूहों तथा विशिष्ट भारतीय-मुस्लिमों द्वारा जलाल-उद-दीन फ़िरोज़ खिलजी को सुल्तान के रूप में नियुक्त किया गया था।
  2. अलाउद्दीन खिलजी: जूना खान, जिसे बाद में अलाउद्दीन खिलजी के रूप में जाना जाता था वह जलाल-उद-दीन का भतीजा और दामाद था। उसने हिंदू डेक्कन प्रायद्वीप, देवगिरी पर आक्रमण किया था जो महाराष्ट्र के हिंदुओं की राजधानी थी। 1296 में वह दिल्ली वापस लौटा और अपने चाचा और ससुर की हत्या कर सुल्तान के रूप में सत्ता प्राप्त की।
  3. अंतिम खिलजी सुल्तान:
  • अलादीन खिलजी की मृत्यु दिसंबर 1315 में हो गयी थी। तत्पश्चात् मलिक काफूर सुल्तान के रूप में गद्दी पर आसीन हुआ था।
  • मलिक काफूर की मृत्यु के बाद मुस्लिम मुखियाओं द्वारा उमर शिहाब-उद-दीन को सुल्तान के रूप में प्रस्तुत किया गया और यदि वह किसी भी तरह वह मारा गया तो उसके बड़े भाई कुतुब-उद-दीन मुबारक शाह को उसके विकल्प के रूप में तैयार किया गया था।
  • मुबारक शाह ने 4 वर्षों तक शासन किया और खुसरो खान ने 1320 में उसकी हत्या कर दी।
  • दिल्ली में मुस्लिम मुखियाओं द्वारा खुसरो खान को सत्ताविहीन करने के लिए गाजी मलिक को आमंत्रित किया और खुसरो खान की हत्या कर वह गयासुद्दीन तुग़लक़ के रूप में वह तुगलक प्रशासन का पहला अग्रणी सुल्तान बना था।

आर्थिक नीति

खिलजी वंश के तहत आर्थिक नीति और प्रशासन में बहुत कठोर थे और यह सब राजा के हाथों में निहित थी। किसानों, व्यापारी और आम आदमी की स्थिति बहुत खराब थी और कभी-कभी पोषण करना भी मुश्किल हो जाता था। कुछ नीतियां इस प्रकार थी:

  • खिलजी शासकों विशेष रूप से अलाउद्दीन खिलजी ने सिर्फ अपने खजाने को बढ़ाने के लिए अपने खर्च करने के दृष्टिकोण को बदल दिया था और अपने दायित्वों का निर्वहन करने तथा युद्धों का विस्तार करने के लिए उसने खजाने को एकत्र किया।
  • उसने कृषि व्यवसाय करों को सीधे-सीधे 20% से 50% तक बढा दिया था जो अनाज और ग्रामीण उपज के रुप में या नकदी के साथ देय होता था और उसने किश्तों में भुगतान को समाप्त कर दिया था।
  • अलाउद्दीन खिलजी ने सल्तनत में गैर मुसलमानों पर चार प्रकार के कर लगा रखे थे जिनमें जजिया या सर्वेक्षण कर, खराज या भूमि कर, कारी या गृह कर और क्षेत्र कर के रूप में चारी शामिल था।
  • वह इसके अलावा उसने यह घोषणा की थी कि उसके दिल्ली स्थित अधिकारियों के साथ पड़ोसी मुस्लिम जागीरदार, खुत, मुक्कदीम, चौधरी और जमींदार सभी खड़ी उपज के उत्पादन का आधा हिस्सा लागत के रूप में जब्त कर सकते हैं।
  • मुस्लिम जागीरदारों के लिए मजदूरी निर्धारण को हटा दिया गया था और मजदूरी को केंद्रीय संगठन द्वारा एकत्रित किया जाता था।
  • राज्य में सभी कृषि व्यवसाय उपजों, जानवरों और गुलामों पर एक प्रकार का गुणवत्ता नियंत्रण था।
  • बाजारों को शहना-ए-मंडी कहा जाता था। मुस्लिम जहाज माल व्यापारियों को खरीदने तथा व्यापार के लिए इन मंडियों में विशेष लाइसेंस मिले हुए थे।
  • इन व्यापारियों के अलावा शहरी क्षेत्रों में अन्य कोई भी किसानों से खरीदने की पेशकश नहीं कर सकता था।
  • यहां जासूसों की विशाल व्यवस्था की गयी थी जो मंडी का निरीक्षण करते थे और उनके पास यह अधिकार था कि कोई भी जो प्रस्तावित सीमा से अधिक बेचता या खरीदता है तो वे उसे जब्त कर सकते थे।
  • जीविका के निजी एकत्रीकरण पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। वितरण प्रणाली अलाउद्दीन द्वारा शुरू की गयी थी और यहां गुणवत्ता नियंत्रण की एक प्रणाली विद्यमान थी।
  • ये खर्चों पर नियंत्रण के अलावा उन लोगों को मजदूरी के बारे में अवगत कराते थे जिन्हें इसका लाभ नहीं नहीं मिलता था।
  • अलाउद्दीन खिलजी की मौत के बाद गुणवत्ता नियंत्रण की विधि ज्यादा कारगर साबित नहीं हो सकी थी।